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________________ [१६] *प्राकृत व्याकरणा * •oroneensorrometowroteoroorrearresosorrrrrrorkersorriorterstion वै सेण मिणमो सिना ।। ३-८५ ।। एतदः सिना सह एस इणम् इणमो इत्यादेशा वा भवन्ति ॥ सव्वस्स वि एस गई । सव्वाण वि पत्थियाण एस मही ॥ एस सहाओ चित्र ससहरस्स !! एस सिरं । इणं । इणमो । पक्षे । एअं । एसो । एसो ॥ अर्थ:-संस्कृत सर्वनाम शब्द 'एतद्' के प्राकृत रूपान्तर में प्रथमा विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' को संयोजना होने पर मूल शब्द 'एतद' और प्रत्यय 'सि' दोनों के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से (एवं क्रम से) 'एम, इणं और इणमो' उन तीन रूपों की श्रादेश-प्रानि हुया करती है। एतद् +सि = (प्राकृत में) एस अथवा इणं अथवा इणमो; दम प्रकार इन तीन रूपों की वैकल्पिक रूप से श्रादेश-प्राप्ति होती है। उदाहरण इस प्रकार है:-सर्वस्यापि एषा गतिः सम्बास वि एस गई अर्थात सभी की यह गति है। सर्वेषामपि पार्थिवानाम् एषा मही = सव्वाण विपस्थिवाण एस मही-अर्थात् सभी औदारिक शरीर धारो जीवों की यह पृथ्वी है । एषः एव स्वभायो शशधरस्य - एस सहाओ चित्र ससहरस्स अर्थात् चन्द्रमा का यहो स्वभाव है । एतद् शिर: एम सिरं अर्थात यह शिर है । इन उदाहरणों से प्रतीत होता है कि प्राकृत में 'एस' प्रथमा एकवचनान्त सर्वनाम रूप तीनों लिंगों में समान रूप से एवं वैकल्पिक रूप से प्रयुक्त हुश्रा करता है। यही स्थिति 'एतद + सिपूर्ण और इणमो रूपों को भी समझ लेना चाहिये। वैकल्पिक पक्ष का सद्भाव होन से पक्षान्तर में 'एतद्' शब्द के तीनों लिंगों में 'सि' प्रत्यय की संयोजना. होने पर इस प्रकार रूप बनते हैं: नपुंसक लिंग में:-एतद् + सि-एतद् = एअं । बीजिंग में:-एतद् + सि = एषा = एसा । पुल्लिंग में:-तद् + सिन् एषः = एसो । 'सव्वस्स' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३.५८ में की गई है। 'वि' अव्यय की मिद्धि सूत्र संख्या १-5 में की गई है। 'एस' सर्वनाम रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-३१ में की गई है। 'गई' की सिद्धि सूत्र-संख्या २-१९५ में की गई है। सर्वेषाम् संस्कृत षष्ठो बहुवचनान्त पुल्लिग सर्वनाम रूप है । इसका प्राकृत रूप सव्वाण होता होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७६ से मूल संस्कृत शब्द 'सर्व' में स्थित 'र' का लोप; २.८६ से लोप हुये 'र' के पश्चात शेष रहे हुये 'व' को द्वित्व 'व' की प्राप्तिः ३-१२ से प्राप्तांग 'सव्य' में स्थित अन्य
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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