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________________ [ १६२ ] ***** * प्राकृत व्याकरण * गुणा रूप की सिद्धि इसी सूत्र में ऊपर की गई है। 'सी' रूप को सिद्धि इसी सूत्र में ऊपर की गई है। 64646644444444 वैतदो उसे स्तो ताहे ॥ ३-८२ ।। एतदः परस्य इसे: स्थाने तो ताहे इत्येतावादेशौ वा भवतः । एत्तो । एत्ताहे । पचे । एखाओ | एउ। पचहि । एवाहिन्तो । एमा ॥ 1 अर्थः - संस्कृत सर्वनाम शब्द 'एतद्' के प्राकृत रूपान्तर में पंचमी विभक्ति के एकवचन संस्कृती प्राप्तस्य प्रत्यय 'इस् अस्' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से ( एवं क्रम से) तां और चाहे ' प्रत्ययों की देश-प्राप्ति हुआ करती है। जैसे :- एतस्मात् = एत्तो और एताहे । वैकल्पिक पक्ष का सद्भाव होने से पक्षान्तर में निम्नो पाँच रूपों का सद्भाव और जाननाः -- ( एतस्मात् = ) एमओ, एवा एहि, एहिन्ती और एचा अर्थात इससे । एतस्मात् संस्कृती एकवचन एल्गिन रूप 'एल, एस. आओ, एउ, एहि, एश्राहितो और एच्चा होत हैं। इनमें से प्रथम दो रूपों में सूत्र संख्या १-११ मूल संस्कृत शब्द 'एतद्' में स्थित अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'दू' का लोप ३८३ से 'न' का लोप और ३-५२ से प्राप्तांग 'ए' में पंचमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतिीय प्राप्तव्य प्रत्यय अमि=अस्' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से तथा वैकल्पिक रूप से ' से और ताछे' प्रत्ययों को आदेश प्राप्ति होकर कम से प्रथम दोनों रूप 'एतो और एत्ता हे सिद्ध हो जाते हैं। शेप पांच रूपों में ( एतस्थात ) एमओ, एश्राउ, एग्राहि, ए पाहिलों और एम' में सूत्र संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'एतद्' में स्थित अन्य हलन्त व्यञ्जन 'ट्रू' का लोप; १-१७७ से 'तू' का लोप ३-१२ से प्राप्तांग 'ए' में स्थित अन्त्य ह्रस्व स्वर 'का' के स्थान पर आगे पंचमी विभ के एकवचन बोधक प्रत्यय का सद्भाव होने से' दीर्घ स्वर 'आ' की प्राप्त और ३-६ से प्राप्तांग 'आ' में पंचमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'इसिश्रम' के स्थान पर प्राकृत में कम से 'ओ, उ, हि, हिन्तो और लुक्' प्रत्ययों को प्राप्ति होकर क्रम से पांचों रूप एमओ, एआउ, ए, एआहितो और एज' रूप सिद्ध हो जाते हैं । ३-८२ ॥ त्थे च तस्य लुक् ॥ ३ ८३ ॥ एतद स्त्थे पर चकारात् तो चाहे इत्येतयोथ परयोस्तस्य लुग्भवति । एत्थ । एतो। एताहे ॥
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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