SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ *प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * 1000000rrestrisorsrwirowroinservatirrrrrrrrrrrrrrrrorscerns roosteron. 'इह' रुप को सिद्धि सूत्र संख्या ७५ में की गई है। इमारंस' की मिद्धि सूत्र-संख्या 350 में की गई है। 'इमम्मि रूप की सिद्ध सूत्र-संख्या ३-७५ में की गई है । ३.७६ ।। गोम्-शस्टा भिसि ॥ ३-७७ ॥ इदमः स्थाने अम् शस्टा भिस्तु परेषु ण आदेशो वा भवति ॥ स पेच्छ । णे पेच्छ । रणे ण । णेहि कयं । पक्षे । इमं । इमे । इभेण । इमेहि ।। अर्थः- संस्कृत सर्वनाम शब्द 'इदम्' के प्राकृत रूपान्तर में द्वितीया विभक्ति के एकवचन में प्राव्य प्रत्यय 'अम'; द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'शा'; तृतीया विभक्ति के एकवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'टा और सतीया विभक्ति के बहुवचन में प्राज्य प्रत्यय 'भिम' के स्थानीय प्राकृतीय प्रत्ययों को प्राप्ति होने पर वैकल्पिक रूप से 'ण' अंग रूप को प्राप्ति हुआ करती है। यों संपूर्ण 'इदम्' शब्द के स्थान पर 'ग' अंरकर की प्रामि हो कर तस्य वात प्राकृनीय उक्त विमक्तियों स्थानीय प्रत्ययों की योजना होता है । जैसे: - इभम् पश्य-ग पेच्छ अर्थात इसको देखो। इमान पश्य-शे पेच्छ अर्थात् इनको देखो । अनेन - गणेगा अर्थात इसके द्वारा। एभिः कृतम् = गोहि कयं अर्थात इनके द्वारा किया गया है। थे उदाहरण कम से द्वितीया और तृतीया विभक्तियों क एकवचन के तथा बहुवचन के हैं । वैकल्पिक पक्ष का सदभाव होने से पन्नास्तर में मं' के साथ 'इम'; 'गे' के साथ इमे'; 'ण' के साथ 'इमेण' और 'हो है' के माथ 'इमेह रूपों का मनुभाव भी ध्यान में रखना चाहिये । इमम् संस्कृन द्वितीया एकवचनान्त पुर्तिलग मर्वनाम रूप है । इसके प्राकृत कर 'ण' और इम झोल है। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या ३-६ से मूल संस्कृत सर्वनाम शब्द 'इनस' के स्थान पर 'ण' अंग रुप को प्राति ३.५ से द्वितीया विभक्ति के एकवचन में 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १.२३ से प्राप्त मत्व म्' के स्थान पर अनुस्वार को प्राप्त होकर प्रथम रूप ' सिद्ध हो जाता है। हिनीय रूप 'इमं की सिद्धि सूत्र-पंख्या 2-07 में की गई है। छ' क्रियापद रूप की सिद्धिसूत्र-संख्या १-में की गई है। इमान मंस्कृत द्वितीया बहुवचनान्त पुल्जिाम सर्वनाम रूप है । इसके प्राकृत रूप 'णे' और इसे होते हैं। इनमें से प्रश्रम रूप में 'ण' अंग रूप की प्राप्ति उपरोक्त रोनि अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र संख्या ३.१४ से प्राप्तांग 'क' में स्थित अन्त्य स्वर '' के स्थान पर 'श्राने द्वितीया विभक्ति बहुवचन के प्रत्यय का मभाव होने से' 'द' की प्राप्ति और ३-४ से द्वितीया विभक्ति कं बहुवचन में संस्कृतीय स्तम्च प्रत्यय 'शस का प्राकृत में लोप होकर प्रथम रूप 'णे' सिद्ध हो जाता है।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy