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________________ [ १५४] 44044448 इदमः कृते इमसि । इमम्मि || * प्राकृत व्याकरण * $*****4*40****** 45046444 ङो में न हः ॥ ३-७५ ॥ मादेशात् परस्य के स्थाने मेन सह ह आदेशो वा भवति । इह | पक्षे | अर्थ :- संस्कृत सवनाम शब्द 'इदम् प्राकृत रूपान्तर में सूत्र संख्या ३-७२ से प्रामांग इम' में सममी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्रामव्य प्रत्यय 'द्धि' के माम होने पर मूलांग 'इस' में स्थित 'म' और 'कि' प्रत्यय इन दोनों के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'ह' की श्रदेश प्राप्ति हुआ करती है। जैसे:अस्मिन-इह अर्थात् इसमें अथवा इन पर वैकल्पिक पक्ष का सदुर्भाव होने से पतान्तर में 'अस्मिन् = इमस्सि और इमम्मि रूपों का अस्तित्व भी जानना चाहिए । 1 Į इम अस्मिन् संस्कृत सप्रमी एकवचनान्त पुल्लिंग सर्वनामरूप है। इसके प्राकृत और इमम्मि होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या ३-७२ से मूल संस्कृत शब्द 'इदम् के स्थान पर प्राकृत में 'इम' रंग रूप की प्राप्ति और ३-७५ से सप्तमी विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'डि' की प्राप्ति होने पर मूलांग 'इम' में स्थित 'म' और प्राप्त प्रत्यय 'कि' इन दोनों के स्थान पर 'ह' की आदेश प्राप्ति होकर प्रथम रूप इह सिद्ध हो जाता है । ६० में की गई है। द्वितीय रूप इमसि' की सिद्धि सूत्र संख्या तृतीय रूप (अस्मिन् इमम्मि में 'इम' अरंग की प्राप्ति उपरोक्त विधि-विधानानुसार एवं तत्पश्चात् सूत्र संख्या ३-११ से प्राप्तांग 'इम' में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में संस्कृतिीय प्राप्तभ्य प्रत्यय 'जि' के स्थान पर प्राकृत में 'किम' प्रत्यय की प्राप्ति होकर तृतीय रूप इमम्मि भी सिद्ध हो जाता है । ३-७५ ।। न त्थः ।। ३-७६ ।। इदमः परस्य ङ: सिम्मि त्थाः (३-५६ ) इति प्राप्तः त्यो न भवति ।। इह । इमसि । इमम्मि || अर्थ:--सूत्र-संख्या ३५६ में ऐसा विधान किया गया है कि अकारान्त सर्वसव आदि सर्वनामों में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में संस्कृतिीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'कि' के स्थान पर हिंसस्मित्थ' ऐसे तीन प्रत्ययों की क्रम से प्राप्ति होती है; तदनुसार प्राप्तव्य इन तीनों प्रत्ययों में से अंतिम तृतीय प्रत्यय 'थ' की इस 'दम' सर्वनाम के प्राकृनीय प्राप्तांग 'इम' में प्राप्ति नहीं होती है। अर्थान 'धूम' में केवल उक्त तीनों प्रत्ययों में से प्रथम और द्वितीय प्रत्यय 'हिंस' और 'भिम' की ही प्राप्ति होती है। जैसे:- अस्मिन् इमस्सि और इमम्मि । सूत्र-संख्या ३-७५ के विधान से 'इम + डि' इह ऐसे तृतीया रूप का अस्तित्व भी ध्यान में रखना चाहिए । प
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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