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________________ [ १४८ ] 69400 * प्राकृत व्याकरण 90000000०००० ***** प्राप्तांग 'ण' में संस्कृतिीय प्रत्यय 'म्' के समान ही प्राकृत में भी 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राम प्रत्यय 'म्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर प्राकृतिीय स्त्रीलिंग रूप ' सिद्ध जाता है। त्रिजटा संस्कृत प्रथमा एकवचनान्त खोलिंग का रूप है। इसका प्राकृत रूप तिखडा होता है। इसमें सूत्र संख्या २७६ ''त्रि' में स्थित 'र' का लोप १-१७७ से 'ज्' का लोप; १-१६५ से 'ट' के स्थान पर 'लू' की प्राप्ति और १-११ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'सिस्' का प्रकृत में लोप होकर तिभा रूप सिद्ध हो जाता हैं । सेन संस्कृत तृतीया एकवचनान्त पुल्लिंग के सर्वनाम का रूप है। इसका प्राकृत रूप रोग होता है। इसमें सूत्र संख्या ३-७० से मूल संस्कृत सर्वनाम 'तद्' के स्थान पर 'ण' अंग रूप की आदेश प्राप्ति ३-१४ से प्रप्तांगण में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' के स्थान पर 'आगे तृतीया एकवचन चोधक प्रत्यय का सद्भाव होने से' 'ए' को प्राप्ति और ३-६ से प्राप्तांग '' में तृतीया विभक्ति एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'टा' के स्थान पर प्राकृत में 'ण' श्रादेश की प्राप्ति होकर प्राकृतीयरूप योग सिद्ध हो जाता है। 'भाण' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या २-१९३ में की गई है। 'तो' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ३ ६७ में की गई हैं। '' रूप की सिद्धि इसी सूत्र में ऊपर की गई है । कर-तल स्थिता संस्कृत विशेषण है। इसका प्राकृत रूप करन्यज-द्विआ होता है। इसमें सूत्रसंख्या १-१७७ से प्रथम 'तू' का खोप १-१५० से लोप हुए 'तू' के पश्चात् शेष रहे हुए 'अ' के स्थान पर 'य' की प्राप्तिः ४-१६ से 'स्था' के स्थान पर 'ट्' को प्रदेश प्राप्ति २६ से प्राप्त '' को द्वित्व 'ठ' की प्राप्ति २-६० से प्राप्त पूर्व 'ठ्' के स्थान पर 'द' की प्राप्ति और ११७७ से द्वितीय 'तू' का लोप होकर कर-यलडिआ रूप सिद्ध हो जाता है । भणि रूप की सिद्धि सूत्र संख्या २-१९३ में की गई है। 'च' अव्यय की सिद्धि सूत्र संख्या १-१४ में की गई है। तया संस्कृत तृत्तोया एकऋचनान्त स्त्रीलिंग के सर्वनाम का रूप है। इसका प्राकृत रूप गाए होता है। इसमें सूत्र- संख्या ३-७० से मूल संस्कृत सर्वनाम 'सद्' स्थान पर स्त्रीलिंग-अवस्था में प्राकृत 'णा' अंग की प्रदेश-प्राप्ति और ३ २६ में प्राप्तांग 'णा' में तृतीया विभक्ति के एकवचन में आकारान्त स्त्रीलिंग में संस्कृतीय प्रत्यय 'टा' के स्थान पर प्राकृत में 'ए' प्रत्यय की आदेश प्राप्ति होकर पाए रूप सिद्ध हो जाता है। में है
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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