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________________ . प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [१३१ ] Vororessonitorstoornosotroversitorsosiatoroorrearres+worhoosteoroor0. की प्राप्ति देखो जाती है । जैसे:-मर्वासाम् सञ्चेनि अर्थात् सभी (स्त्रियों के | अन्यासाम्-अन्नेसि अर्थात अन्य (स्त्रियों के । तासाम् - तेमि अर्थात उन (स्त्रियों) के । इस प्रकार 'बहुलं' सूत्र के आदेश से श्राकारान्त स्त्रीलिंग वाले सर्वनामों में भी 'एमि' प्रत्यय की प्राप्ति हो सकती है। सर्वेषाम् संस्कृत षष्ठो बहुवचनान्त पुल्लिग के सर्वनाम का रूप है । इसके प्राकृत रूप सन्धेसिं और मव्वाण होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-मख्या २-७ से मूल संस्कृत शब्द 'सर्व' में स्थित 'र' का लोप; २-८४ मे लोप हुए 'र' के पश्चात रहे हुए 'व' को द्वित्व 'घ' की प्राप्ति और ३-६१ से षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'श्राम्' के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से 'डेति=सिं' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप सव्वेसि सिद्ध हो जाता है। द्वितोय रूप-(मर्वेषाम् ) सम्वाण में 'सठव' अंग की प्राप्ति उपरोक्त विधि अनुसार; तत्पश्चात प्राप्तांग 'सब्ब' में सूत्र-संख्या ३.१२ से अन्त्य 'अ' को आगे षट्री बहुवचन-बोयक प्रत्यय का सद्भाव होने से' 'या' की प्राप्ति और ३.६ से षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'श्राम्' के स्थान पर (प्राकृत में) 'ण' प्रत्यय की प्राप्ति होफर द्वितीय रूप सध्याग भी सिद्ध हो जाता है। ___ अन्येषाम् संस्कृत षष्ठी बहुवचनान्त पुल्लिगके सर्वनाम का रूप है । इसके प्राकृत रूप अम्नेसि और अन्नाण होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सुस-संख्या २-१८ से मूल संस्कृत शब्द 'अन्य' में स्थित 'य' का लोप; २.५ से लोप हुए 'य' के पश्चात् रहे हुए 'न' को द्वित्व 'न' की प्राप्ति और ३-६१ से षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीम प्रत्यय 'आम्' के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से 'डेसिमि ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप अन्नसि सिर हो जाता है। द्वितीय रूप (अन्येषाम्=) अन्नाव में 'अन्न' अग की प्राप्ति उपरोक्स विधि अनुसार, तत्पश्चात प्राप्तांग 'अन्न' में सूध-संख्या :-१२ से अन्त्य 'अ' को 'श्रागे पच्छी बाहुवचन बोधक प्रत्यय का सद्भाव होने से' 'श्रा' को प्राप्ति और ३.६ से षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीच प्रत्यय "श्राम' के स्थान पर प्राकृत में ' प्रत्यय की पाप्त होकर द्वितीय रूप-अन्नाम भी सिद्ध हो जाता है। अपरेषाम् संस्कृत पाठी बहुववनाल पुन्निा के सर्वनाम का रूप है । इसके प्राकन रूप अवरसिं और भवराण होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या १-२३१ से मूल संस्कृत शब्द 'पर' में स्थित 'प' के स्थान पर 'घ' की प्राप्ति और ३-६१ मे षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्रस्थान 'श्राम के स्थान पर पाकृत में बैकल्पिक रूप में 'बेमि - एसि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रचम रूप अपरोसे सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप-अपरेषाम=) अपगण में 'अवर' अंग की प्राप्ति उपरोक्त विधि के अनुसार नत्पश्चात सूत्र संख्या ३.५२ और ३ ६ से परोक्त 'अन्नाण' के ममान ही साधनिका की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप अवगण भो सिद्ध हो जाता है।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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