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________________ [ ११८ ] * प्राकृत व्याकरण * 149+++ +$$$$$******* $$$$ $$$$$$$$ $$*$$$$$$$$$$ $$ $$$444 राज्ञि संस्कृत सप्तम्यन्त एकवचन का रूप है । इसका प्राकृत रूप रायाणम्मि होता है । इममें 'रायाण' अंग की प्राप्ति पोक्त विधि-अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र संख्या ३-११ से सप्तमी विभक्ति के गफवचन में संस्कृतीय प्रत्यय कि- इ के स्थान पर प्राकृत में 'म्मि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर रायाणाम्म रूप सिद्ध हो जाता है। राजसु संस्कृत सप्तम्यन्त बहुवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप रायाणेसु होता है। इसमें 'गजनरायाण अंग की प्राप्ति नपरोक्त विधि अनुसार; तत्पश्चात सूत्र-संख्या ३-१५ से प्राप्तांग 'रायाण' में स्थित अन्त्य 'प्र के आगे सप्तमी-बहुवचन-(बोधक-प्रत्यय) का भद्भाव होने से 'ए' की प्राप्ति और ४.४४८ से सप्तमी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृती य प्राप्तव्य प्रत्यय 'सु' के समान हो प्राकृत में भी 'सु' प्रत्यय की प्राप्ति होकर रायाणेसु रूप सिद्ध हो जाता है। 'राया' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-४९ में की गई है। युवा संस्कृत रूप है । इसकें प्राकृत रूप जुवाणी और जुआ होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या १-२४५ से 'य' के स्थान पर 'ज' की प्राप्तिः ३.७६ से मूल संस्कृत शब्द 'युधन' में स्थित अन्त्य 'अन्' अवयव के स्थान पर 'प्राण' श्रादेश को प्राप्ति; और और ३.५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में प्राप्त अकारान्त अंग जुवाण' में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'डो-श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप जुषाणों सिद्ध हो आता है। द्वितीय रूप-(युवन ) जुगा में सूत्र संख्या १-१७७ से 'व' का लोप; १-२४४ से 'य' के स्थान पर 'ज' की प्राप्ति; १-११ से अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'म्' का लोप और और ३-४५ से (तथा ३-५६ के निर्दश से प्राप्तांग अकारान्त 'जुब' में प्रथमा विभक्ति के एकवचन में संस्कृतोय प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' का सद्भाव होने से प्राकृत में अन्त्य 'अ' को 'श्रा की प्राप्ति; एवं १-११ से प्राप्त वक्त प्रत्यय 'मिस' का लोप होकर प्रथमान्त एकवचन रूप जुआ सिद्ध हो जाता है । युषा-जनः संस्कृत प्रथमान्त एकवचन का रूप है । इसका प्राकृत रूप जुवाण-जणो होता है। इममें 'जुवाण' रूप की प्राप्ति उपरोक्त विधि अनुसार, तत्पश्चात् सूत्र-संख्या १२८ से अन्त्य 'न' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिय में संस्कृतीय प्रत्यय 'मि' के स्थान पर प्राकृत में 'डो = श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर जुषाण अणो रूप सिद्ध हो जाता है। 'बहमा संस्कृत प्रथमान्त एकवचन का रूप है। इसके प्राकृत कप बम्हाणो और धम्हा होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या २-४६. से मूल संस्कृत शब्द 'प्रझन में स्थित 'र' का लोप; २-४४ से 'झ' के स्थान पर रह' की प्राप्ति; 4.५६ से अन्त्य 'अन्' अवयव के स्थान पर 'प्राण' आदेश की प्राप्ति और ३.२ से प्राप्तांग अकारान्त रूप 'बम्हाण' में प्रथमा विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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