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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [११७ ] Protesto00000wwserservorroresrorstoorstertorrorsroomroserodroinon राज्ञः संस्कृत द्वितीयान्त वहुवचन का रूप है । इसका प्राकृत रूप रायाणे होता है। इसमें 'राजन रायाण' अंग की प्राप्ति उपरोक्त विधि अनुपार; तत्पश्चात् सत्र संख्या ३-१४ से प्राप्तांग 'रायाण' में स्थित अन्त्य 'अ' के 'आगे द्वितीया-ब वचन-बोधक प्रत्यय का सद्भाव होने से' 'ए की प्राप्ति और ३.५ से द्विनोया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्रत्यय ‘शस' का प्राकृत में लोप होकर रायाणे रूप सिद्ध हो जाता है । राज्ञा संस्कृत तृतीयान्त एकवचन का रूप है । इसका प्राकृत रूप रायाणेण होता है। इसमें 'राजनरायाण' अंग की प्राप्ति उपरोक्त विधि-अनुमार; तत्पश्चात् सत्र-संख्या ३-१४ से प्राप्तांग 'रायाण' में स्थित अन्त्य 'अ' के 'पागे तृतीया-एकवचन-(बोधक-प्रत्यय) का सद्भाव होने से 'ए' की प्रान्ति और ३-६ से तृतीया विभक्ति के एकवचन में मस्कतीय प्रत्यय 'टा-श्रा' के स्थान पर प्राक़त में 'ण' प्रत्यय की प्राप्ति होकर रायाणेण रूप सिद्ध हो जाता है।। राजाभिः संस्कृत तृतीयान्त बटुवचन का रूप है । इसका प्राकृत रूप गयाणेहिं होता है। इसमें 'राजन = पायाण' अंग की प्राप्ति उपरोक्त-विधि अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३-१५ से प्राप्तांग 'रायाण' में स्थित अन्त्य 'अ' के 'श्रागे तृतीया-बहुवचन-(बोधक-प्रत्यय) का सद्भाष होने से' '' की प्राप्ति और ३-७ से तृतीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'भिप्स' के स्थान पर प्राकृत में हिं' प्रत्यय की प्राप्ति होकर रायाणहिं रूप सिद्ध हो जाता है। राक्ष: संस्कृत पञ्चम्यन्त एकवचन रूप है। इसका प्राकृत-रूप-रायाणाहिन्तो होता है । इसमें 'राजनरायाण' अंग की प्रामि उपरोक्त विधि-अनुमार; तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३-१२ से प्राग 'रायाण' में स्थित अन्य 'अ' के आगे पंची एकवचन-(बोधक प्रत्यय) का मद्भाव होने से' 'या' की प्राप्ति और ३-६ से पंचमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'डसि-अम्' के स्थान पर प्राकृत में 'हिन्ता' प्रत्यय का प्राप्ति होकर रायाणाहिन्तो रूप सिद्ध हो जाता है। . राज्ञः संस्कृत षष्ठयन्त एकवचन रूप है। इसका प्राकृत रूप-रायागास होता है। इसमें 'राजम्याण' अंग की प्राप्ति-उपरोक्त विधि-अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३.१० से षष्ठी-विभक्ति के प्रवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'इस्-अम्' के स्थान पर प्राकृत में संयुक्त 'रस' प्रत्यय की प्राप्ति होकर रायाणा रूप सिद्ध हो जाता है। राक्षाम् मंस्कृन षष्ठयन्त बहुवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप रायाणाणं होता है। इसमें 'राजनरायाण' अंग की प्राप्ति उपरोक्त विधि-अनुसार, तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३-१२ से प्राप्तांग याण' में स्थित अन्त्य 'अ' के 'आगे षष्ठी- बहुवचन-(बोधक प्रत्यय) का सदुभाव होने से' 'या' की प्राप्ति ३.६ से षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'आम्' के स्थान पर प्राकृत में 'ण' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२७ से प्राप्त प्रत्यय 'ए' पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर रायाणाणं रूप सिद्ध हो जाता है।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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