SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * प्राप्त 'पूर्व छ' का 'द; सिख हेम व्याकरण के २-४-१८ से प्रथमा के एक वचन में स्त्रीलिंग में 'आ' को प्राप्ति होकर परिवठा रूप सिद्ध हो जाता है। वित्तीय रूप में जहाँ 'परि' आदेश नहीं होगा, वहां पर सुत्र संख्या २.७२ से' का लोप १-१७७ से 'त्' का लोप; २-७७ में '' का लोप; २८९ से '3' का द्विस्व 'ई'; २-९० से प्राप्त पूर्व '' का 'द'; सिद्ध हेम व्याकरण के २०४-१८ स प्रथा के एक वचन में त्रीलिग में 'आ, की प्राप्ति होकर पड़ा रूप सिद्ध हो जाता है। प्रतिष्ठितम् संस्कृत रूप हं ! इसके प्राकृत रूप परिट्ठिों और पट्ठिभं होते हैं। इसमें सूत्र-संख्या १-३८ से विकल्प से 'प्रति' के स्थान पर 'परि' आदेश; २-७७ से 'ए' का लोप: २.८९ से 8' का द्विस्व 'छ', २.९० से प्राप्त पूर्व '' का 'द'; १-१७७ से 'त' का लोप; ३-२५ से प्रपमा एक वचन में नपुंसक लिग में 'सि' प्रस्थय के स्थान पर 'म्' को प्राप्ति; १.२३ से प्राप्त 'म' का अनुस्वार होकर 'परािष्ट्र' रूप सिद्ध हो जाता है। द्वितीय कप में जहा परि' आदेश नहीं होगा; यहाँ पडष्टि रूप सिद्ध हो जाता है। श्रादेः॥ १-३१ ॥ श्रादेरित्यधिकार: कगचज (१-१७७) इत्यादि सूत्रात् प्रागविशेपे वेदितव्यः ।। अर्थ:-यह सूत्र आणि अक्षर के संयंत्र में यह आदेश देता है कि इस सूत्र से प्रारंभ करके आगे १.१७७ सूत्र से पूर्व में रहे हए सभी सूत्रों के सम्बन्ध में यह विधान है कि जहाँ विशेष कुछ भी नहीं कहा गया है। यहां इस शुभ से शादों में रहे हए मावि अक्षर के समान्य में कहा हुआ उल्लेख' समझ लेना । अर्थात सूत्र संख्या १-३९ से १.१७६ तक में यदि किसी शम्ब के सम्बन्ध में कोई उल्लेख हो; और उस उल्लेख में आदि मध्य अन्स्य अथवा उपान्त्य असा कोई उल्लेख न हो सो समान लेना कि यह उल्लेख आदि अक्षर के लिये है। न कि शेष अक्षरों के लिये। त्यदायव्ययात् तत्स्वरस्य लुक ।। १-४०॥ त्यदादेरव्ययाच्च परस्य तयोरेव त्यदायव्यययोरादेः स्वरस्य बहुलं लुग भवति ।। मम्हेत्थ अम्हे एत्थ । जइमा जइ इमा । जइह जइ अहं ।। अर्थ:-समान शायदों और अध्ययों के आगे पवि सर्वनाम शब्द और अव्यय आदि आ जाय; से इन सम्बों में रहे हुए पर यघि पास-पास में आ जाय तो आदि स्वर का बना करके लोप हो जाया करता है। अयम् संस्कृत शब्द है । इसका मूल 'अस्मद' में प्रवमा के बहुवचन में 'जस्' प्रत्यय सहित पत्र संख्या ५-१०६ 'अम्हे' आदेश होता है । यो अम्हे रूप सिद्ध हो जाता है। अन संस्कृत अध्यय है। इसका प्राकृत रूप एत्य होता है । इसमें सूत्र-संख्या १.५७ से 'अ' का 'ए'; और २-२६१ से 'नके स्थान पर 'स्व' होकर एत्थ रूप सिब हो जाता है।
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy