SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * बाहुः संरकृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप बाह होता है। इसमें सूत्र संख्या ३-१९ से प्रथमा के एक वचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर विसर्ग' का लोप होकर अन्त्य हम्ब स्वर 'ज' का दीर्घ स्वर 'क' होकर वाहू रूप सिद्ध हो जाता है ।। ३६।। अतो डो विसर्गस्य ॥ १-३७ ॥ संस्कृतलक्षणोत्पन्नस्यातः परम्य विमर्गस्य स्थाने डो इत्यादेशो भवति । सर्वतः । सवनी ।। पुरतः । पुरओ ।। अग्रतः । अग्गयो । मार्गतः । मग्गो ॥ एवं सिद्धावस्था पेक्षया । भवतः । भवभो ।। भवन्तः । भवन्ता ॥ सन्तः । सन्ती ॥ कुतः । कुदौ ।। अर्थ:-संस्कृत व्याकरण के अनुसार प्राप्त हुए 'त' में स्थित विसर्ग के स्थान पर 'डो' अर्थात् 'ओ' आदेश हुआ करता है। जैसे-सर्वतः में सम्यो । यो आग के शव उबाहरण मागत: में ममओ तक जान लेना। अन्य प्रत्ययों से सिद्ध होने वाले शब्दों में भी यदि 'तः शप्त हो जाय, तो उस 'त:' में स्थित विसर्ग के स्थान पर 'जो' अर्थात् 'भो आदेश हुआ करता है । जैसे-भवतः में भवो । भवन्तः में भवन्तो । यों ही सन्तो और वो भी समझ लेना । सर्वतः संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप सम्बओ होता है । इसमें सूत्र-संख्या २-७९ से 'र' का लोप; २.८९ से 'प' का द्वित्व'; १-१७७ से 'त्' का लोप; १-३७ से विसर्ग के स्थान पर 'ओ' का आदेश होकर सध्खो रूप सिद्ध हो जाता है। पुरतः संस्कृत शम्ब है। इसका प्राकृत रूप पुरो होता है । इसमें सूत्र संख्या -१७७ से त्' का लोप: १-३७ से निसर्ग के स्थान पर 'ओ' आदेश होकर पुरओ रूप सिब हो जाता है। अग्रता संस्कृत शम्ब है। इसका प्राकृत रूप आगओ होता है । इसमें मूत्र संख्या २.७९ से 'र' का लोप; २-८९ से 'ग' का द्विस्व 'ra'; १-१७७ से 'त' क: लोपऔर १-७ से विसर्ग के स्थान पर 'ओ' मावेश होकर अग्गो रुप सिद्ध हो जाता है। मार्गतः संस्कृत शब का प्राकृत रूप ओ होता है । इसमें सूत्र-संख्या १-८४ से 'मा' के 'आ' का ' २-७१ से 'र' का लोप, २-८९ से 'ग' का द्वित्व 'ग'; १-१७७ से 'त' का लोप और १-३७ से विसर्ग के स्थान पर 'ओ' आवेश होकर मग्गी रूप सिद्ध हो जाता है। भवतः संस्कृत शब्व है। इसका प्राकृत रूप भवो होता है । इसमें सूत्र-संख्या १.२७७ से 'त्' का लोप; १.३७ से विसर्ग के स्थान पर 'ओ' बादेश होकर अपनी रूप सिद्ध हो जाता है। सषन्तः संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप भवन्तो होता है। इसमें सूत्र संख्या १-३७ से विसर्ग के स्थान पर 'ओ' आवेश होकर भवन्तो रुप सिद्ध हो जाता है।
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy