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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [ ३६ न्यखम संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप तसं होता है । इसमें मूत्र-संस्था २-७९ से'' और '' में स्थित चोनों 'र' का लोप; २-७८ से 'म्' का लोप; १-२६ से 'त' पर आगम रूप अनुस्वार को प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से 'म्' का अनुस्वार होकर तंसं रूप सिद्ध हो जाता है। अश्रु-संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप अंसु होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२६ से 'अ' पर आगम रूप अनुस्वार की प्राप्ति; २-३९ से 'श्रु में स्थित 'र' का लोप१-२६० से लोप हुए 'र' के पश्चात् शेष रहे हए 'शु' के 'क' को 'स' को प्राप्ति; ३-२५ मे प्रथमा विभक्त के एक वचन में अकासम्त नपुंसकलिप में "सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और !-२३ से 'म'का अनुस्वार होकर अंतुं रूप सिद्ध हो जाता है। इमनु-संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप मंसू होता है। इसमें सूब-संख्या २-८६ से प्रथम हलन्त 'श्' का लोपः १-२६ से 'म' पर आगम रूप अनुस्वार को प्राप्तिः २-७१२ में चित 'र' का लोग; १.१६० में लोपए 'र' के पश्चात् शेष रहे हुए 'न' में स्थित 'श' के स्थान पर स्' को प्राप्ति और ३-१९ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में उकारान्त पुल्लिए में संस्कृत प्रत्यय 'सि के स्थान पर अन्स्य हस्व स्वर 'उ' को दोषं स्वर '' को प्राप्ति होकर मैम रूप सिद्ध हो जाता है। पुच्छम्- संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप कुछ होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-८६ से '' पर आगम रूप अनुस्वार की प्राप्ति; १-१७७ की वृत्ति से हलम्त '' का लोप; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से 'म'का अनुस्वार होकर पुछ रूप सिद्ध हो जाता है। गुच्छम् संस्कृप्त रूप है । इसका प्राकृत रूप गुछ होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२६ से 'गु' पर आपम रूप अनुस्वार की प्राप्ति; १-१७७ को वृत्ति से हलन्त 'च' का लोप और मंत्र साधनका उपरोक्त के समान ३-२५ तथा १-२३ से होकर गुंछ रूप सिद्ध हो जाता है । म संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप मुढा होता है। इसमें सूत्र संस्पा १-८४ से दीर्घ स्वर 'क' के स्थान पर हृस्व स्वर 'उ' की प्राप्लि; १-२६ से प्राप्त 'म' पर आम रूप अनुस्वार को प्राप्ति; २-७१ मे हलन्त 'र' का लोप २-४१ से संयुक्त पाजन 'छ' के स्थान पर 'इ' को प्राप्ति; १-११ से मूल संस्कृत रूप 'मून' में स्थित अन्त्य हलन्त भ्यन्जन न्' कर लोप और ३-४९ से प्रथमा विभक्ति के एक बचन में 'नकारात-शन' में अन्य लोप होने के पश्चात् संप अन्त्य 'अ' को 'आ' की प्राप्ति होकर भुटा रूप सिद्ध हो जाता है। पशुः संस्कृत रूप हैं। इसका प्राकृत रूप पर होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२६ से '' पर आगम सप अनुस्वार की प्रारित; २-११ मे 'र' का लोप; १-२६२ से 'न' के स्थान पर 'स' को प्राप्ति और ३-१९ से प्रथमा क्मिपित के एक बचन में अकारात पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हस्व स्वर 'अ'को दीर्घ स्वर' को प्राप्ति होकर पंस रूप सिद्ध हो जाता है।
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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