SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 607
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हे अ. ( निपात विशेषः) संबोधन आह्वान, ईर्ष्या आदि अर्थक अव्ययः २-२१७ । हे अ. (अस) नीचे; २-१४१ । टिल्लं वि. (अधस्तलम् ) नीचे का; २-१६३ । पृष्ठ संख्या २ १० ११ ६९ ६५ ७१ ७८ 44 ( ५९ } शुद्धि पत्र [ ज्ञातव्यः -- ( १ ) प्रस्तुत ग्रन्थ में प्रुफ संशोधन में काफी ध्यान रखने पर भी दृष्टि-दो-यशात् एवं भ्रम-मशात् यदि कोई अशुद्धि प्रतीत हो तो कृपालु पाठकगण उसे सुधार कर पढने की कृपा करें। शब्दों को सिद्धि और साधनिका में प्रत्येक स्थान पर अनेकानेक सूत्रों का संख्या-कम प्रदान करने की आवश्यकता पड़ी है अतः हजारों शब्दों की सिद्धि में हजारों बार सूत्र- कम संख्या का निर्देशन करना पड़ा है। ऐसी स्थिति में सूत्र- कम संख्या में कहीं कहीं पर जिपरीता तथा असंबद्धता प्रतीत होतो विश पाठक उसे सुधार कर पढ़ने का परम अनुग्रह करें। (२) अनेक स्थानों पर छापते समय में दबाव के कारण से मात्राएँ टूट पई है। बेठ गई है अतः उन्हें यथाहोति से समझ पूर्वक पढ़ने की कृपा करें। (३) विभिन्न वाक्यों में" के स्थान पर "हूँ" ही छप गया है; इसलिये इसका भी ध्यान रखें। (४) "रेफ्" रूप "" भी कहीं कहीं पर टूट गया है, बैठ गया है; अतः इसका संबंध भी यथोचित रोति से संयोजित कर ले। यही बात "अनुस्वार" के लिये भी जानना । (५) अनेक शब्दों में टाइप को घिसावट के कारण से भी अक्षर अपने आप में पूरी तरह से व्यक्त नहीं हो सके है; ऐसी स्थिति में विचार-शील पाठक उनके संबंध का अनुशीलन करके उनको पूर्ण रूप में संशोधित करने की महती कृपा करें। कहीं कहीं पर "ब" के स्थान पर "व" और "व" के स्थान पर "ब" छप गया है। (६) दृष्टि में आई हुई कुछ अशुद्धियों का स्थूल संशोधन यहाँ पर प्रदान किया जा रहा है। तदनुसार सुधार कर अध्ययन करने की कृपा करें; यही मुख्यतः विनंति है । (७) अनेक स्थानों पर " हलन्त अक्षरों के स्थान पर पूर्ण रूप से अकारान्त अक्षर मुद्रित हो गये हैं; अतः संबंधानुसार उन्हें "कन्स बर" हो समझे । ( 4 ) मी शुद्धि-पत्र में "पंक्ति संस्था" से तात्पर्य पाठ्य-वतियों से गणना करके तथनुसार "उचित" संख्या का निर्धारण करें। बॉर्डर से ऊपर की बाह्य पंक्ति को संख्या रूप से नहीं गिनं । इति निवेदक-संपादक। ] पंक्ति संख्या ७१४२०१३ २५ १४ १३ ८, १०, ४ १५ हो अ. (हो) विस्मय, आश्चर्य, संबोधन, आमन्त्रण अर्थक अव्यय २-२१७ । होइ अ. (भवति) वह होता है; १ ९ २ २०६ । होही अ. ( भविष्यति ) होगी; २-१८० । अशुद्धांश समानान्तर इन्द-रुहिर लितो रिवरः ૩૪ तः विश्वम्मः ईवष् २-१२ शुद्धश समानानन्तर द- इन्द- रुहिर- लितो नव वारिवर: ३५ मः विषम्भः ईषत् २- ११२
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy