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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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'र' अव्यय पाद-पूर्ति अर्थक मात्र होने से साधनिका की श्रावश्यकता नहीं रह जाती है।
कलम-गोपी संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप कलम-गोवी होता है । इसमें सूत्र संख्या १-२३१ से 'प' के स्थान पर 'व' की प्राप्ति और ३-१६ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में दीर्घ इकारान्त स्त्रीलिग में संस्कृत प्रत्यय 'सि' के स्थान पर अन्त्य दीर्घ स्वर 'ई' को 'यथा-स्थिति' अर्थात दीर्घता ही प्राप्त होकर कलम-गोवी रूप सिद्ध हो जाता है।
'वृत्ति' में वर्णित अन्य अध्ययों की माधनिका की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि उक्त अव्यय संस्कृत अध्ययों के समान ही रचना वाले और अर्थ वाले होने से स्वयमेव सिद्ध रूप वाले ही हैं। ।। २-२१७ ॥
प्यादयः ॥२-२१८॥ प्यादयो नियतार्थवृत्तयः प्राकृते प्रयोक्तव्याः॥ पि वि अप्यर्थ ।।
अर्थः-प्राकृत भाषा में प्रयुक्त किये जाने वाले 'पि' और 'वि' इत्यादि अव्ययों का वही अर्थ होता है; जो कि संम्कत भांपा में निश्चित है; अत: निश्चित अर्थ वाल होने से इन्हें 'वृत्ति' में 'नियत अर्थयत्तिः विशेषण से सुशोभित किया है। तदनुसार 'पि' अथवा चि' अश्यय का अर्थ संस्कृतीय 'अपि' अव्यय के समान ही जानना चाहिये ।
'पि' छाव्यय की मिद्धि सूत्र संख्या १.४१ में की गई है। 'वि' अव्यय की मिद्धि सूत्र संख्या १.६ में को गई है। ॥ २-२ ८ ॥
इत्याचार्य श्री हेमचन्द्रसूरि विरचितायां सिद्ध हेमचन्द्राभियानस्त्रीपन शब्दानुशासन वृत्तौ
अष्टमस्थाध्यायस्य द्वितीयः पादः ।। अर्थ:-इस प्रकार प्राचार्य श्री हेमचन्द्रसूरि द्वारा रचित 'सिद्ध-हेमचन्द्र-शब्दानुशासन' नामक संस्कृत-प्राकृत-व्याकरण की स्वाय 'प्रकाशिका' नामक संस्कृतीय टोकान्तर्गत पाठवें अध्याय का अर्थात् प्राकृत व्याकरण का द्वितीय चरण समाप्त हुआ।
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