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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित ____ अर्थ:-'अर्ध' = खंड रूप अथवा प्राधा समभाग' इस अर्थ में और 'ईषम् अल्प अर्थात् थोडासा' इस अर्थ में भी प्राकृत में 'दर' अव्यय का प्रयोग किया जाता है । इस प्रकार जहाँ 'दर' अव्यय हो; वहाँ पर विषय-प्रसंग को देखकर के दोनों प्रथों में से कोई सा भी एक उचित अर्थ प्रकट करना चाहिये । जैस:-अध विकसितम् अथवा ईषत् विकसितम्-दर-विप्रसिध अर्थात् (अमुक पुष्प विशेष) आधा ही खिला है अथवा थोड़ा सा ही खिला है। अर्ध-विकसितम् अथवा ईषत्-विकसितम् संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप दर विश्रास होता है। इसमें सूत्र संख्या-२-२१५ से 'अर्ध' अथवा 'ईषस' के स्थान पर प्राकृत में 'दर' श्रादेशः १-१७७ से 'क्' और 'त्' का लोप; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में प्रकारान्त नपुंसकलिंग में संस्कृत प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर दर-विमसि रूप सिद्ध हो जाता है। ।। २.२१५ ॥ किणो प्रश्ने ॥ २-२१६ ।। किणो इति प्रश्ने प्रयोक्तव्यम् ।। किणो धुवसि ।। अर्थ:-'झ्या, क्यों अथवा किसलिये' इत्यादि प्रश्न वाचक अर्थ में प्राकृत भाषा में 'किणो' अव्यय प्रयुक्त होता है । जहाँ 'किणो' अव्यय प्रयुक्त हो; वहाँ इसका अर्थ 'प्रश्नवाचक' जानना चाहिये। जैसे:-किम् धूनीषिकिणो धुवसि अर्थात क्यों तू हिलाता है ? 'किणो' प्राकृत साहित्य का रुढ अर्थक और रूढ रूपक अव्यय किणी सिद्ध है। ___ धूनीषि संस्कृन सफर्मक क्रियापद का रूप है । इसका प्राकृत रूप धुवसि होता है इसमें सूत्र संख्या-v-५६ से संस्कृत धातु 'धून' के स्थान पर प्राकृत में 'धु' श्रादेश; ४-३६ से हलन्त प्राकृत धातु 'धुव' में विकरण प्रत्यय 'श्र' की प्राप्ति और ३-१४० से वर्तमान काल के एक वचन में द्वितीय पुरुष में 'सि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर धुपति रूप सिद्ध हो जाता है ।।। २-२१६ ।। इ-जे-राः पादपूरणे ॥ २-२१७ ॥ इ, जे, र इत्येते पाद-पूरणे प्रयोक्तव्याः ।। न उसा इ अच्छीई । अणुकूलं वोजे । गेण्हइ र कलम-गोषी ।। अहो । हहो । हेहो। हा । नाम । अहह । होसि । अयि । महाह । अरि रि हो इत्यादयस्तु संस्कृत समत्वेन सिद्धाः ।। - अर्थ:-'छंद आदि रचनाओं में पाद-पूर्ति के लिये अथवा कथनोप-कथन में एवं संवाद-वार्ता में किसी प्रयोजन के केवल परम्परागत शैली विशेष के अनुसार 'इ, जे, र' वर्ण रूप अध्यय प्राकृत रचना में प्रयुक्त किये जाते हैं। इन एकाक्षरी रूप अव्ययों का कोई अर्थ नहीं होता है। केवल ध्वनि
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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