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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [५२३ 'शुपा रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-११ में की गई है। 'ते' संस्कृत सर्वनाम रूप है। इसका प्राकृत रूप भी 'ते' ही होता है। इसमें सूत्र संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'तत्' के अन्त्य हलन्त म्यान 'त्' का लोप; ३-५८ से प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में प्राप्त संस्कृत प्रत्यय 'जम्' के स्थान पर प्राकृत में 'हे' प्रत्यर को प्राप्ति, प्राप्त प्रत्यय 'डे' में '' इत्संक्षक होने से पूर्वस्थ 'त' में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' की इत्तज्ञा होकर इस 'अ' का लोप और १.५ से हलन्त 'त्' में प्राप्त प्रत्यय 'प' की संधि होकर 'ते' रूप सिद्ध हो जाता है। 'यिन' अव्यय की सिद्धि सूत्र संख्या १.८ में की गई है। 'मह' अव्यय को सिद्धि सूत्र संख्या १-२९ में की गई है। 'नु' संस्कृत श्रन्यय रूप है। इसका प्राकृत रूप 'गु' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२२६ से 'न्' के स्थान पर 'ण' की प्राप्ति होकर 'पु" रूप सिद्ध हो जाता है। 'एअं' सर्वनाम रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-२०९ में की गई है। 'तह' अध्यय रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १.६७ में की गई है। "तेण' सर्वनाम रूप की सिद्धि सूत्र संख्या २-१८६ में की गई है। कृता संस्कृत क्रियापद का रूप है । इसका प्राकृत रूप कया होता है। इसमें सत्र संख्या १-१२६ से 'ऋ' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति; १-१७७ से 'त' का लोप और १-१८० से लोप हुए 'त्' के पश्चात शेष रहे. हुए 'श्र के स्थान पर 'य' की प्राप्ति होकर कया रूप सिद्ध हो जाता है। 'अहयं सर्वनाम रूप की सिद्धि सूत्र संख्या २.१९९ में की गई है। 'जह' अव्यय रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १७ में की गई है। कस्मै संस्कृत चतुर्धन्त सर्वनाम रूप है । इसका प्राकृत रूप कस्त होता है । इसमें सूत्र संख्या ३-७१ से मूल संस्कृत शब्द 'किम्' के स्थान पर प्राकृत में विभक्ति-वाचक प्रत्ययों को प्राप्ति होने पर 'क' रूप का सभाष, ३.१३१ से चतुर्थी विभक्ति के स्थान पर प्राकृत में पष्टी-विभजित को प्राति; तदनुसार ३.१० से षष्ठी विभक्ति के एकवचन में प्राकृत में संस्कृत प्रत्यय 'इस्' के स्थान पर 'स्स' प्रत्यय को प्राप्ति होकर कस्स रूप सिद्ध हो जाता है। __ कथयामि संस्कृत सकर्मक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप साइमि होता है । इसमें सूत्र संख्या ४-२ से संस्कृत धातु 'कथ्' के स्थान पर साह,' आदेशः ४-२३६ से हलन्त धातु 'साह' में 'क' धातु में प्रयुक्त विकरण प्रत्यय 'अंय' के स्थान पर प्राकृत में विकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति; ३-१५८ से प्राप्त विकरण प्रत्यय 'श्र' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति और ३-१४१ से वर्तमान काल के एकवचन में तृतीय
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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