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________________ * प्रिोदक हिन्दी व्याख्या सहित - हत्य संस्कृत संशोधनात्मक रूप है। इसका प्राकृत रूप हिश्रय होना है। इसमें सूत्र-संख्या १-१२८ से 'ऋ' के स्थान पर 'इ' की प्राप्ति; १.१७७ से 'द' का लोप और ३-३७ से संबोधन के एक वचन में प्राकृत में प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' के स्थानीय रूप 'म्' प्रत्यय का अभाव होकर हिअय रूर मिद्ध हो जाता है। मृतक सरिता संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप मडह मरित्रा होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१२६ से 'ऋ' के स्थान पर 'अ' को प्राप्ति; १-२०६ से 'त' के स्थान पर 'ड' की प्राप्ति; १.१७७ से 'क' का लोप; ४-४४७ से लोप हुए 'क' के पश्चात् शेष रहे हुए 'अ' के स्थान पर 'ह' की व्यत्यय रूप प्राप्तिः (क्योंकि ' और 'इ' का समान उच्चारण स्थान केठ है); और १-१५ से (मूल रूप 'सरित' के अन्त्य इलन्त व्यञ्जन रूप) न्' के स्थान पर 'बा' की प्राप्ति होकर माह-सरिमा रूप सिद्ध हो जाता है। ''अरे' प्राकृत माहित्य का रूढ-रूपक और रूड-अर्थक अव्यय है; अत: साधनिका की आवश्यकता नहीं है। ... 'मए' सर्वनाम रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ?-१९९ में की गई है। 'समें संस्कृत अध्यय रूप है । इसका प्राकृत रूप भी समं हो है। अतः साधनिका की आवश्य. कता नहीं है। ! 'मा' संस्कृत अव्यय रूप है। इसका प्राकृत रूप भी 'मा' ही है ! अतः आधनिका की आवश्यकता नहीं है। __"कुरु' संस्कृत प्राशार्थक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप करेसु होता है। इसमें सूत्रसंख्या ४-२३६ से मूल धातु' 'कर ' के हलन्त व्यञ्जन 'र' में विकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति; ३-१५८ से प्राप्त विकरण प्रत्यय 'अ' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति; और ३-१७३ से आसार्थक लकार के द्वितीय पुरुष के एक वचन में प्राकृत में 'सु' प्रत्यय की प्राप्ति होकर करेनु रूप सिद्ध हो जाता है। उपहासम, संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप उवहासं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२३१ से 'प' के स्थान पर 'व' की प्राप्ति ३.५ से द्वितीया विभक्ति के एक वचन में 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर उपहासं रूप सिद्ध हो जाता है ।।२-२०१॥ हरे ठोपे च ॥ २-२०२॥ क्षेये संभाषण रतिकलहयोश्च हरे इति प्रयोक्तव्यम् ॥ क्षेपे । हरे णिल्लज्ज ।। संभाषणे । हरे पुरिसा ॥ रति-कलहे । हरे बड्डु-वल्लह ॥ अर्थः-प्राकृत साहित्य में 'हरे' अव्यय 'निरस्कार'-अर्थ में; 'संभाषण'-अथ में अथवा 'उद्गार प्रकट करने' अर्थ में; और 'प्रीतिपूर्वक कलह' अर्थ में याने 'रति-किया-संबंधित कलह' अर्थ में प्रयुक्त
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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