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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित प्रणमत संस्कृत मानायक सकर्मक क्रिया का रूप है। इसका प्राकृत रूप 'पणवह होता है। इसमें सूत्रसंख्या २-७९ से 'र'का लोप; ४.२२६ से 'म' के स्थान पर 'क' श्रापेश कौर ३-१७६ से पाहायक लकार में द्वितीय पुरुष के वचन में संस्कृत प्रत्यय 'त' के स्थान पर प्राकृत में 'म' प्रत्यय की प्राप्ति होकर पणवह रूप सिद्ध हो जाता है। मामाय संस्कृत स्तुत विशेष रूप सका MR समापन होता है । इसमें सूत्र-संपा-१२२८ से 'न' के स्थान पर 'ग' की प्राप्ति; ३-१३१ से संस्कृतीय चतुर्थी के स्थान पर प्राकृत में षष्ठी-विभक्ति की प्राप्ति ३-१० से षष्ठी विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में (अथवा नपुसकालम में)-संस्कृत 'क' के स्थानीय प'आय' के स्थान पर प्राकृत में 'स' प्रत्यय की प्राप्ति होकर माणस्य रूप सिख ले जाता है। 'हला' प्राकृत भाषा का संबोधनात्मक अध्यय होने से हर-रूपक है। अत: सानिका को मावश्यकता नहीं है 'हलें प्राकृत-माषा का संबोश्रमात्मक सम्यम होने से रूक-अपंक और रूप-रूपक है। अतः सानिका की आवश्यकता नहीं है। हताशस्य संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप हमासल्स होता है। इसमें पूत्र संख्या १-७७ से 'तु' का लोप: १-१८० से लोप हुए 'त्' के पश्चात घोष रहे हए 'य' के स्थान पर 'ब' की प्राप्ति; १-२६० से 'श' के स्थान पर 'स' की शक्ति और ३-१० से षष्ठी विपिल के एक पचन में अकारान्त पुल्लिग में संस्कृत प्रस्थप 'छस्' के स्थानीय रूप 'स्य' के स्थान पर प्राकृत में 'स्स' को प्राप्ति होकर हयासस्स सिट हो जाता है। . . (हे) सखि ! संस्कृत संवोधनात्मक रूप है । इसका प्राकृत रूप (हे) सहि होता है। इसमें सब संस्पा १.१८७ हो 'स' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३.४२ से संबोधन के एक वचन में वीर्य इकारान्त स्त्रीलिंग में अन्य दीर्घ स्वर के स्थान पर ह्रस्व स्वर'' की प्राप्ति होकर (ह) सारूप सिद्ध हो जाता है। ईशी संस्कृत विशेषणात्मक रूप है।सका प्राकृत रूप एरिसि होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१०५ से प्रथम के रुपान पर 'ए' की प्राप्ति २-०७ से १ का लोप १-१४२ से'' के स्थान पर 'रि' को प्राप्ति; १-२६० से '' के स्थान पर 'ए' को प्रारिस और १-८४ से दीर्घ स्वर द्वितीय स्थान पर हत्व स्पर'को प्राप्ति होकर एरिसि रूप सिद्ध हो जाता है। चिस' मध्यय को सिवित्र संस्था १-८ में की गई है। गतिः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत कर गई होता है इसमें सूत्र संख्या १-१७७ से '' का लोप और ३.१९ से प्रथमा विभक्ति के एक वजन में हस्त इकारान्त स्त्रीलिंग में संस्कृत प्रस्थय 'सि' के स्थान पर प्राइस में अगम हुस्ष स्वर 'इ'को दीर्घ स्वर' की प्राप्ति होकर गई रूप सिब हो जाता है। दे संमुखीकरणे च ॥ २.१६६ ॥ संमुखीकरणे सख्या-आमन्त्रणे च दे इति प्रयोक्तव्यम् ॥ दे पसिन ताव सुन्दरि ॥दे मा पसिन निश्रत्तसु ॥
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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