SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 494
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४८० ] * प्राकृत व्याकरण * विलितः, कुपित: अथवा नकुलः संस्कृत विशेषण रूप है। इनके स्थान पर प्रान्तीय भाषा में 'आहियो' कप का निपाल होता है इस संख्या ३२ से श्वमावि के एक वचन में अकारान्त पुड में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर आहित्यो कह रूप सिद्ध हो जाता है । भीष्मः अथवा भयंकर संस्कृत विशेषण है। इनका प्रान्तीय भाषा रूप ल्लवको होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१७४ से भूल संस्कृत रूप भीष्म अथवा भयंकर के स्थान पर रूद्र रूप 'लव' की प्राप्ति और ३-० से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'लो' प्रत्यय को प्रप्ति होकर रूप लक्की सिद्ध हो जाता है। के एक आनकः (वाब- विशेष ) संस्कृत रूप है। इसका प्रातीय भाषा रूप बिडिरो होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१७४ से मूल संस्कृत रूप अनक' के स्थान पर रूह रूप 'विडिर की प्राप्ति और २ सेम वचन में अकारान्त पुलिस में 'सि' कीड हो जाता है। के क्षरितः संस्कृत विशेषण रूप है उपरोक्त 'विद्विरो' के समान ही होकर पकडिओ रूप सिद्ध हो जाता है। इसका प्रान्तीय भाषा र पडियो होता है। इसकी सानिका भी उद्भट: संस्कृत विशेषण रूप हूँ। इसका प्रान्तीय भाषा रूप उप्पेडो होता है। इसको साधणिका भी उपरोक्त 'बिडिरों' के समान ही होकर उच्चहेंडी एक रूप सिद्ध हो जाता है। गर्वः संस्कृत रूप है। इसका प्रान्तीय भाषा रूप भडकरी होता है। इसको साधनिका भी उपरोक्त 'बिट्टिने' के समान ही होकर मडप्फरी रु रुप सिद्ध हो जाता है। सह संस्कृत रूप है। इसका प्रान्तीय भाया रूप पछि होता है। इसमें संख्या २-१७४ से मूल संस्कृत शब्द 'सह' के स्थान पर प्रान्तीय भाषा में 'पडिच्छिर' रूद्र रूप का निपातः ३ २५ से प्रथमा विभक्ति के एक बस में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म' का बनुस्वार होकर रूप पद्ध हो जाता है। आठवाल संस्कृत रूप है। इसकी प्रांतीय भाषा रूप दृष्ट होता है इसकी साधना उपरोक्त पक्रि के सामान ही होकर रूप अट्टम सिद्ध हो जाता है। व्याकुल: संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्रातीय भाषा रूप बिडकडो होता है। इसकी सानिका उपरोक्त 'बिट्टिये' के समान ही होकर रूप विहडफडो सिद्ध हो जाता है। होता है। इसकी साधनिका उपरोक्त परिि औत्सुक्यम् संस्कृत प है 'डर' के सम्मान ही होकर रूढ रूप हठ रूप है। इसका प्रान्तीय भाषा कब के समान होकर कड का सिद्ध हो जता है । इसका प्रान्तीय भाषा रूप हलाल होता है। इसकी सामनिका उपरोक्त सिद्ध हो जाता है।
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy