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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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पलही रूप सिद्ध हो जाता है।
बली साकुन विशेषण रूप है। इसका देशम प्राकृत रूप उउजल्लो होता है। इसमें सूत्र-संहपा -१५४iसे संपूर्ण संस्कृत शब्द 'बली' के स्थान पर देशण प्राकृत में 'उरजल्ल' रुप का निपात और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पलिग ने 'सि' प्रत्यय के सान पर 'श्री' प्रत्यय को प्राप्ति होकर उजालो रूप सिद्ध हो जाता है।
ताम्बूलम् संस्कृत रूप है । इसका देशन प्राकृत रूप लसुरं होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-१७४ ते संपूर्ण संस्कृत का 'ताम्बल' के स्थान पर देशज प्राकृत में 'झसुर' रूप का निपात; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर म्' प्रत्यय प्राप्ति और१-२३ से प्राप्त 'म' का अनुस्वार होकर झसुरं रूप सिद्ध हो जाता है।
पुंश्चली संस्कृत रूप है। इसका वेशज प्राकृत रूप छिई होता है। इसमें मूत्र-संख्या २-१७४ से संपूर्ण संस्कृत रूप 'पुश्चली' के स्थान पर देशज प्राकृत में छिछई' रूप का निपात और ३-१९ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में वीर्घ ईकारान्त स्त्रोलिा में संस्कृत प्रत्यय 'सि' के स्थान पर अन्य दोघं 'T' को यया रूप स्थिति को प्राप्ति होकर छिछई रूप सिद्ध हो जाता है।
_शाखा संस्कृत रूप है। इसका देशन प्राकृत रूप साहलो होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-१७४ संपूर्ण संस्कृत रूप 'शाखा के स्थान पर वैवाज नाकत में 'साहुली' रूप का निपात और ३.१९ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन दीर्घ ईकारान्त स्त्रीलिंग में संस्कृत प्रत्यष सिके स्थान पर अन्त्य दीर्घकी या रूप स्थितिको प्राप्ति होकर सहिला रूप सिद्ध हो जाता है।
गउओ रूप को सिद्धि सूत्र-संख्या १-१४ में की गई है।
गोला संस्कृत रूप है । इसका देशज प्राकृत रूप भी गोला ही होता है । इसमें सूत्र-संख्या १-२१ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त स्त्रीलिंग में प्राप्त संसहत प्रत्यय 'सि' के स्थानीय प्रत्यय रूप विसर्म बदलत रुपन्जम रूप होने से-सोप होकर गोला सिम होता है।
गोदावरी संस्कृत रूप है । इसका वेशज प्राकृत रूप गोवरो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १.१७७ से 'ई' का लोप; और ३-१९ से प्रथमा विभक्ति के एक बचन में वीर्ष इकारान्त स्वीलिंग में संस्कृत प्रत्यय सिरे स्थान पर अन्य वीर्घ 'ई' की यया रूप स्थिति की प्राप्ति होकर गोआवरी रूप सिद्ध हो जाता है।
आहित्य, लस्लपक, विडिर, पञ्चडिम, उप्पेहर, मडम्फर, पाबुग्छिर, अट्ट मट्ट, बियफ्फर, और ह म इत्यादि शम्प सर्वपा प्रान्तीय होकर रूढ अर्थ वाले हैं। अत. इनके पर्यायवाची शारों का संस्कृत में ममार है; किन्तु इनकी अर्थ-प्रधानता को लेकर एवं इनके लिये स्थानापन शादों का निर्माण करके काम चलाऊ सायमिका निम्न प्रकार से है: