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________________ ४७०] * प्राकृत व्याकरण * विद्युत्पत्र-पीतान्धाल्लः ॥२-१७३ ॥ ___ एभ्यः स्वार्थे लो वा भवति | विज्जुना। पत्तलं । पीवलं । पीअलं । अन्धलो । पक्षे । विज्जू । पत्तं । पीअं अन्धो ॥ कथं जमलं : यमलमिति संस्कृत शब्दात् भविष्यति ॥ अर्थ:-संस्कृत भाग्य विद्युत्, पत्र, पोत, और अन्य के प्राकृत-रूपान्तर में 'व-अर्थ' में वैकल्पिक रूप से '' प्रत्यय की प्राप्ति होती है। जैसे:-विद्युत-विजुला अथवा विज्जू; पत्रम्-पत्तलं अथवा पतं; पोतम्-पोवलं, पीअल अथवा पीअं और अन्य अन्धलो अथवा अन्धी। प्रश्न:-प्रकृत रूप जमलं की प्राप्ति कैसे होती है? उत्तर:-प्राकृत रूप 'जमलं' में स्थित 'ल' स्वाय-बोधक प्रत्यय नहीं है। किन्तु मल संस्कृत रूप 'यमलम्' का हो यह प्राकृत रूपान्तर है, तदनुसार 'ल' मूल-स्थिति से रहा हुआ है ; न कि प्रत्यय रूप से; यह ध्यान में रहे | विद्यत् से निमित विजुला रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-5 में की गई है और विज्जू रूप की सिद्धि सूत्र. सम्मा १-१५ में की गई है। पत्रम् संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप पत्तल और पत्तं होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १.७९ से 'र' का लोपः २-८९ से लोपए 'र' के पश्चात् शेष रहे हुए 'त' को विस्व 'त' की प्राप्ति, २.१७३ मे 'स्व-अयं' में वैकल्पिक रूप से 'ल' प्रत्यय की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुसकलिंग में 'सि' प्रस्यप के स्याम पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म' का अनुस्वार होकर क्रम से दोनों रूप पत्तलं भौर पत्तं सिद्ध हो जाते है। पीयल और पीअलं रूमों की सिद्धि सूत्र-संख्या १-२१३ में की गई है। तृतीय रुप पीअं की सिद्धि भी सूत्रसंख्या १-१३ में की गई है। अन्धः संस्कृत विशेषण रूप है । इसके प्राकृत रूप अन्धलो और अन्धो होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या २-१७३ से 'स्व-अर्घ' में कल्पिक रूप से 'क' प्रत्यय को प्राप्ति और ३.२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय को प्राप्ति होकर क्रम से दोनों रूप अन्धली और अन्धो सिद्ध हो जाते हैं। यमलम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप जमले होता है। इसमें सूत्र-संक्पा १-२४५ से 'य' के स्थान पर 'ज' को प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर जमलं रूप सिद्ध हो जाता है ।। २-१७३ ।। गोणादयः ॥२-१७४॥ गोणादयः शम्दा अनुक्त-प्रकृति-प्रत्यय-लोपागम-वर्णविकारा बहुलं निपात्यन्ते ।।
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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