SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 467
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * उत्तरः- संस्कृत में 'बाला' अर्थ में 'मत् एवं 'वत' के अतिरिक्त अन्य प्रत्ययों को भी प्राप्ति हुश्रा करती है। जैस-धनवाला= धनी और अर्थ वाला = अर्थिक; इसलिये प्राचार्य श्री का मन्तव्य यह है कि उपरोक्त प्राकृत भाषा में वाला' अर्थ को बतलाने वाले जो नव-आदेश कहे गये हैं; वे फेवल संस्कृत प्रत्यय 'मत' अथवा 'वत्' के स्थान पर ही आदेश रूप से प्राप्त हुश्रा करते हैं; न कि अन्य 'वाला' अर्थक प्रत्ययों के स्थान पर आते हैं। इसलिये मुख्यतः 'मत' और 'वत' का उल्लेख किया गया है । प्राम 'वाला' अर्थक अन्य संस्कृत-प्रत्ययों का प्राकृत-विधान अन्य सूत्रानुसार होता है। जैसे:-धनी-धणी और अर्थिकः = अस्थिओ इत्यादि ।। स्नेहभान संस्कृत विशेषण रूप है । इसका प्राकृत रूप नहालू होता है। इसमें सूत्र संख्या २-५७ से हलन्त व्यञ्जन 'स्' का लोप; २-१५६ से 'वाला-अर्थक' संस्कृत प्रत्यय भान' के स्थान पर 'श्रालु' आदेश; १-५ से 'ह' में स्थित 'अ' के साथ 'आलु' प्रत्यय के 'श्रा' की संधेि और ३-१६ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में द्वस्व उकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हस्व स्वर उ' को दीर्घ स्वर 'ऊ' की हिमोकर नेपाल एप लिन हो जाता है . दयालू रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१७७ में की गई है। ईयावान् संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप 'ईसालू' होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७ से 'र' का लोप; २-४८ से 'य' का लोप; १-२६० से 'प' के स्थान पर 'स' की प्राप्ति; २.१५ से 'वाला अर्थक' संस्कृत प्रत्यय 'वान्' के स्थान पर 'पालु' आदेश और शेष साधनिका 'नेहालू' के समान हो होकर ईसालू रूप सिद्ध हो जाता है। लज्जावत्या संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप'लज्जालुा होता है। इसमें सूत्र-संख्या २.१५४ से 'वाला-अर्थक' संस्कृत स्त्रीलिंग वाचक प्रत्यय 'वती' के स्थान पर 'पालु' आदेश; १-५ से उजा' में स्थित श्रा' के साथ 'बालु' प्रत्यय के 'आ' की संधि और ३-२६ से संस्कृत तृतीया विभक्ति के एक वचन में स्त्रीलिंग में टो' प्रत्यय के स्थान पर प्राकृत-भाषा में 'या' प्रत्यय की प्राप्ति होकर लबालुआ रूप सिद्ध हो जाता है। शोभावान संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप सोहिल्ली होता है । इसमें सूत्र-संख्या १-२६० से 'श' के स्थान पर 'स्' की प्रामि; १-१८७ से 'भ' के स्थान पर 'ह' की प्रामि; २-६५६ से 'वाला-अर्थक' संस्कृत प्रत्यय 'वान के स्थान पर प्राकृत में 'इल्ल' आदेश; १-१० से प्राप्त 'हा' में स्थित 'श्रा के आगे स्थित 'इल्ल' को 'इ' होने से लोप; १-५. से प्राप्त हलन्त 'ह' में धागे स्थित 'इल्ल' की 'इ' की संधि और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर सोहिल्लो रूप सिद्ध हो जाता है । _छायापान संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप छाइल्लो होता है। इसमें सूत्र-संख्या१-१७७ से 'य' का लोप; २-१५६ से 'वाला अर्थक' संस्कृत प्रत्यय 'वान' के स्थान पर प्राकट में 'इल्ल'
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy