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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [३७१ उल्का: संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप उक्का होता है। इसमें सूत्र संख्या २.७६ से 'ल' का लोप और २.८६ से शेष 'क' को द्वित्य क' को प्राप्ति होकर उक्का रूप सिद्ध हो जाता है। यल्फलम संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप बक्कल होता है । इसमें सूत्र संख्या २-७६ से प्रथम 'ल' का लोर; . से शेष क' को द्वित्व 'क' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपु'मक लिंग में "सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर पक्कलं रूप सिद्ध हो जाता है। सही रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ६-६० में की गई है। अनः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप अहो होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७E से 'घ' का लाप; २.८६ से शंष 'द' को वित्व '६ की प्राप्ति और ३-० से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर अहो रूप सिद्ध हो जाता है। लोद्भश्रो रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या - १६ में की गई है। अको रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १०९७७ में की गई है। चम्गो रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१७७ में की गई है। सराहं रूप की सिद्धि सूत्र संख्या २-७५ में की गई है। विमलवः संस्कृत विशेषण रूप है । इसक प्राकृत रूप विक्कवो होता है। इस में सूत्र-संख्या २.७६ से 'ल' का लोप; :-C से शेष 'क' को द्वित्व 'क' की प्राप्ति और ३-२ ले प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'यो' प्रत्यय को प्राप्ति होकर विक्कको रूप सिद्ध हो जाता है। पर और पिक्क दोनों रूपों की सिद्धि सूत्र-संख्या १-४७ में की गई है। ध्वस्तः साकृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृन रूप धत्थो होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७ से च का लोप; २-४५ से संयुक्त व्यक-जन 'स्त' के स्थान पर 'य' की प्राप्ति; २.८६ से प्राप्त 'थ' को द्वित्व 'थ थ' की प्राप्ति २-६० से प्राप्त पूर्व 'थ' को 'च' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक पचन में अकारान्त पुल्लिा में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर ओ प्रत्यय की प्राप्ति होकर धरथा रूप सिद्ध हो जोता है। चकम् संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप चक होता है। इस में सूत्र संख्या २.७६ से 'र' का लोप; २-८६ से शेष रहे हुए 'फ' को द्वित्व 'क' की प्राप्तिः ३.२५ से प्रथमा विभक्ति के एक पचन में अकारान्त नपुसक लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर पक्के रूप सिद्ध हो जाता है।
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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