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________________ ३५२ ] * प्राकृत व्याकरण * M r . .. से प्राप्त; 'ज' को द्वित्व 'जज' की प्रानि और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक बचन में प्रकारांत पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय होकर मुजो रूप सिद्ध हो जाता है ।।५-६४। एतः पर्यन्ते ॥२-६५॥ पर्यन्ते एकारात् परस्य यस्य रो भवति ।। परन्तो !एत इति किम् । पज्जन्तो ।। अर्थः-संस्कृत-शब्द पर्यन्त में सूत्र-संग्ख्या १-५८ से 'प' वर्ण में 'ए' की प्राप्ति होने पर संयुक्त व्यञ्जन 'य' के स्थान पर 'र' की प्राप्ति होती है । जैसे:-पर्यन्तः = पेरन्तो ॥ प्रश्नः-पर्यन्त शब्द में स्थित 'प' वर्ण में 'ए' को प्राप्ति होने पर ही संयुक्त व्यसन 'य' के स्थान पर की प्राप्ति होता है-ऐसा धो कहा गया है? उत्तर:-यदि पर्यन्त शब्द में स्थित 'प' वर्ण में 'ए' की प्राति नहीं होती है, तो संयुक्त व्यञ्जन 'य' के स्थान पर 'र' की प्राप्ति नहीं होकर 'जज' की प्राप्ति होती है । अतः संयुक्त व्यञ्जन 'य' के स्थान पर 'र' की प्राप्ति तभी होती है, जबकि प्रथम वर्ण 'प' में 'ए' की प्राप्ति हो; अन्यथा नहीं। ऐसा स्वरूप विशेष समझाने के लिये ही 'एत:' का विधान करना पड़ा है। पक्षान्तर का उदाहरण इस प्रकार है:पर्यन्त:=पज्जन्तोः ॥ परन्तो और पजन्ती दोनों रूपों की सिद्धि सूत्र-संख्या १-५८ में की गई है ॥२-६५|| आश्चर्य ॥२-६६ ॥ श्राश्चर्ये ऐतः परस्य यस्य रो भवति ॥ अच्छेरं ॥ एत इत्येव । अकछरिश्रं ॥ अर्थ:- संस्कृत शब्द 'आश्चर्य में स्थित 'श्च व्यजन में रहे हुए 'अ' स्वर को 'ए' की प्राप्ति होने पर संयुक्त व्यञ्जन 'य' के स्थान पर 'र' की प्राप्ति होती है । जैसे:-आश्चर्यम् अच्छेरं ।।। प्रश्न:-श्च व्यन्जन में स्थित 'अ' स्वर को 'ए' की प्राप्ति होने पर ही 'य' के स्थान पर 'र' की प्राप्ति होती है ऐसा क्यों कहा गया है ? उत्तरः- यदि 'श्च' के 'अ' को 'ए की प्राप्ति नहीं होती है तो 'य' के स्थान पर 'र' की प्राप्ति नहीं होकर 'रिश्र" की प्राप्ति होती है। जैसे:-आश्चर्यम्-अच्छरिअं॥ अच्छेरे और अच्छरिअं दोनों रूपों को सिद्धि सूत्र-संख्या १-७ में की गई है ॥२-६॥ ___ अतो रिपार-रिज्ज-री ॥२-६७॥ आश्चर्ये प्रकारात् परस्य यस्य रिश्र अर रिज्ज रीब इत्येते श्रादेशा भवन्ति ॥ अच्छरिमं अच्छअरं अच्छरिज अच्छरीअं ।। अत इति किम् । अच्छेरं ॥
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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