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________________ ३४६ ] * प्राकृत व्याकरण * ___ अर्थ...संस्कृत शब्द 'भीष्म' में स्थित संयुक्त व्यञ्जन' के स्थान पर 'फ' की प्राप्ति होती है। जैसे-मोड लियो . भीष्मः संस्कृत विशेषण रूप है । इसका प्राकृत रूप भिष्फो होता है। इसमें सूत्र संख्या १-८४ से दीर्घ स्वर 'ई' के स्थान पर हस्य स्वर 'इ' की प्राभि; २-५४ से संयुक्त व्यञ्जन 'म' के स्थान पर 'फ' की प्राप्ति; २-८८ से प्राप्त 'फ' को द्वित्व 'फफ' की प्राप्ति; २-६० से प्राप्त पूर्व 'क' को 'प्' की प्राप्ति और ३-२ मे प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति सोकर भिष्फो रूप सिद्ध हो जाता है। -५४|| श्लेष्मणि वा ॥२-५५ ॥ श्लेष्म शब्दे पस्य फो वा भवति ।। सेफो सिलिम्हो ।। अर्थ:-संस्कृत शब्द श्लेष्म' में स्थित संयुक्त व्यजन 'म' के ग्थान पर विकल्प से 'फ' की प्राप्ति होती है । जैसे:-- श्लेष्मा सेफो अथवा सिलिम्हो !! इलमा संस्कृत (श्लेष्मन्। का प्रथमान्त रूप है । इसके प्राकृत रूप सेफो और सिलिम्हो होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या २.७६ से 'ल' का लोप; १-२६० से शेष 'श को 'स' की प्राप्ति; ५-५५. से संयुक्त व्यञ्जन 'म' के स्थान पर विकल्प से 'फ' की प्राप्ति, १-१५ से मूल शब्द में स्थित अन्त्य हलन्त व्यन्जन न्' का लोप; ५-३२ से मूल शबर 'नकारान्त होने से मूल शब्द को पुल्लिगत्व की प्राप्ति और तदनुमार ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में प्राप्त प्रकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ प्रत्यय को प्रारित होकर प्रथम रूप से फो सिद्ध हो जाता है। द्वित्तीय रूप में सूत्र-संख्या १-८४ से 'श्ले' में स्थित दीर्घ स्वर 'ए' के स्थान पर ह्रस्व स्वर 'इ' की प्रोप्ति होने से 'श्लि' हुआ; २-१०६ से हलन्त व्यञ्जन 'श' में 'इ' आगम रूप स्वर की प्राप्ति होने से 'शिल' रूप हुश्रा; १-२६० से 'श' का 'स' होने से 'सिलि' की प्राप्ति; २-७४ से संयुक्त व्यञ्जन 'म' के स्थान पर 'म्ह' की प्राप्ति; और शेष माधनिका प्रथम रूप के ममान ही होकर द्वितीय रूप सिलिम्बो भी सिद्ध हो जाता है ।।२-५५शा , तामामेम्बः ॥२-५६ ॥ अनयो: संयुक्तस्य मयुक्तो यो भवति ॥ तम्बं । अम्ब । अम्बिर तम्यिर इति देश्यो । अर्थ:-संस्कृत शब्द ताम्र' और 'श्राम्न' में स्थित संयुक्त व्यञ्जन 'न' के स्थान पर 'ब' की प्राप्ति होती है । जैसे ताम्रम् तम्बं और श्राम्रम् अम्बं । देशज चोली में अथवा ग्रामीण बोली में साम्र का तम्बिर और आम्र का अम्बिर भी होता है।
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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