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________________ સરસ્વતિમ્હેન મજ઼ીલાલ સાં [ E * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित **** द इन्द रुहिर - लित्तो सहइ उइन्दी नह - पहावलि - अरुणो | संझा-बहु - बारिशे विष्णुला-बभिन्न ॥ दुवस्येति किम् । गूढोअर - तामरमाणुमारिणी भमर- पन्तिव्य । श्रस्व इति किम् | पुहवीसो || अर्थ:- प्राकृत में 'इवर्ण' अथवा 'उबर्ग' के आगे विजातीय स्वर रहे हुए हों तो उनको परस्पर में संधि नहीं हुआ करती है। जैसे:-न वैरिवपि अवकाशः म बेरि-बग्गे दि अवयास । इस उदाहरण में 'वि' में स्थित '' के आगे 'अ' रहा हुआ है। किन्तु संस्कृत के समान होने योग्य संधि का भी यहां निषेध कर दिया गया है। अर्थात् संधि का विधान नहीं किया गया है। यह 'इ' और 'अ' विषयक संधि-निषेध का उदाहरण हुआ। दूसरा उदाहरण इस प्रकार है:- वन्दामि आर्य-वैरं वन्दामि अज्ज-वइरं । इस उदाहरण में 'वन्दामि' में स्थित अन्त्य 'इ' के आगे 'अ' आया हुआ है; परन्तु इनमें संधि नहीं की गई है। इस प्रकार प्राकृत में 'इ' वर्ण के जाने विजातीयस्वर को प्राप्ति होने पर संधि नहीं हुआ करती है । यह तात्पर्य है । उपरोक्त गाथा की संस्कृत छात्रा निम्न है । दनुजेन्द्ररुधिरलिप्तः राजते उपद्रो नखप्रभावल्यरुणः । सन्ध्या वधूगूडो नव वारिवर इव विद्युत्प्रतिभिन्नः ॥ इस गाय में संधि-विषमक स्थिति को समझने के लिये निम्न शब्दों पर ध्यान दिया जाना चाहिये:- 'दणु इन्द; 'उ + इवो; ' 'पहावलि + अरुणो; ' 'वह अवऊडो; ' इन शब्दों में क्रम से 'उ' के पश्चात् 'द' 'इ' के पश्चात् 'अ' एवं 'उ' के पश्चात् 'अ' आये हुए ह। ये स्वर विजातीय स्वर हे मतः प्राकृत में इस सूत्र (१-६) में विधान किया गया है कि 'व' वर्ण और 'उ' वर्ग के आगे विजातीय स्वर आने पर परस्पर में संधि नहीं होती है। जबकि संस्कृत भाषा में सवि हो जाती है । जैसा कि इन्हीं शब्दों के संबंध में उपरोक्त श्लोक में देखा जा सकता है । प्रश्न:- 'इवणं' और 'उम्र का ही उल्लेख क्यों किया गया है ? अन्य स्वरों का उल्लेख क्यों नहीं किया गया है ? उत्तर:- अन्य स्वर 'अ' अथवा 'अ' के आगे विजातीय स्वर आ जाय तो इनकी संधि हो जाया करती है अतः 'अ' 'मा' की पृथक् संधि-व्यवस्था होने से केवल 'क' वर्ण और 'उ' वर्ग का ही मूल-सूत्र में उल्लेख किया गया है । उदाहरण इस प्रकार है: - ( संस्कृत - छाया )- गूढोदर - तामरसानुसारिणी-भ्रमरपक्तिरिव = गुडोअरतामरसानुसारिणी भमर-पन्ति य; इस वाक्यांश में 'गूढ + उअर' और 'रस + अनुसारिणी' शब्द संधि-योग्य दृष्टि से ध्यान देने योग्य हैं। इनमें 'अ + उ' की संधि करके 'ओ' लिखा गया है। इसी प्रकार से 'कब' की संधि करके 'आ' लिखा गया है। यों सिद्ध होता है कि 'अ' के पश्चात् विजातीय स्वर 'ज' के आ जाने पर भी संधि होकर 'ओ' की प्राप्ति हो गई। अतः यह प्रमाणित हो जाता है कि 'इ' अथवा 'उ' के आगे रहे हुए विजातीय स्वर के साथ इनकी संधि नहीं होती है। जबकि 'अ' अथवा 'आ' के नागे संधि हो जाया करती है। विजातीय स्वर रहा हुआ हो तो इनकी
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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