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________________ * प्रयोदय हिन्दी व्याख्या सहित * क्षः संस्कृत रूप है। इसका पार्ष-प्राकृत में इक्खू रूप होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-३ से 'स्' के स्थान पर 'ख' को हारिन; से प्राप्त 'ख' को द्वित्व 'ख ख की प्राप्ति २०६० से प्राप्त पूर्व 'ख' को 'क' की प्रापि और ३-१६ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में इकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हुस्त्र स्त्रर 'उ' को दीर्घ स्वर 'ऊको प्राप्ति होकर इकाबू रूप मिद्ध हो जाता है। सोरम् संस्कृत रूप है। इसका आप प्राकृत रूप खीरं होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-३ से 'क्ष' के स्थान पर 'ख' की प्राप्ति; ३.५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर खीर रूप सिद्ध हो जाता है। साहश्यम् संस्कृत रूप है। इसका आर्ष-प्राकृत रूप सारिखं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१४२ से 'द के स्थान पर 'रि' आदेश की प्राति; २-३ से 'क्ष' के स्थान पर 'ख' को प्राप्ति; २८ से प्राप्त 'ख' को द्वित्व 'खख की प्राप्ति; २०६० से प्राप्त पूर्व 'ख' को 'क' की प्राप्ति; २-७. से 'य' का लोप; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक व वन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म् प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म् का अनुस्वार होकर सारिकरखं रूप सिद्ध हो जाता है ॥२-१७॥ क्षमायां कौ ।। २.१८ ॥ कौं पृथिव्यां वर्तमान क्षमा शब्दे संयुक्तस्य यो भवति ।। छमा पृथिवी ।। लाक्षणिकस्यापि दमादेशस्य भवति । भा । छमा । काविति किम् । खमा धान्तिः ।। __ अर्थः-यदि 'क्षमा' शब्द का अर्थ पथिवी हो तो 'क्षमा' में रहे हुए संयुक्त व्याजन 'क्ष' के स्थान पर 'छ' की प्राप्ति होनी है । मूल-सूत्र में जो 'कु' लिखा हुआ है; उसका अर्थ पृथिवी' होता है। उदाहरण इस प्रकार है:-क्षमा-धमा अथात् पथिवी ॥ पृथिवी में सहन-शोलना का गुण होता है । इसा सहनशीलता वाचक गुण को संस्कृत-भाषा में 'चम' भी कहते हैं: तदनुसार जैसा गुण जिसमें होता है उस गुण के अनुमार हो उसकी संज्ञा संस्थापित करना 'लाक्षणिक-तात्पर्य' कहलाता है। अतः पृथिवी में सहन-शालता का गुण होने से पृथिवी की एक संज्ञा 'आमा' भी है । जो कि लाक्षणिक आदेश रूप है । इम लाक्षणिक-आदेश रूप शब्द 'मा' में रहे हुए हलन्त संयुक्त व्यञ्जन 'र' के स्थान पर 'छ' होता है। जैसे:इमाम्मा । प्रश्न:-मूल-सूत्रकार ने सूत्र में 'को' ऐसा क्यों लिखा है ? उत्तर:- कि 'क्षमा' शन के संस्कृत भाषा में यो अर्थ होते हैं। एक तो पृथिवी अर्थ होता है और पूसरा ज्ञान्ति अर्थात् सहनशीलता । अतः जिस समय में 'क्षमा' शब्द का अर्थ 'पृथिवी' लेता है तो
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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