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________________ ३०२ ] * प्राकृत व्याकरण * **** रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१५१ में की गई है । २-१३ || प्रत्यूषे पश्च हो वा ॥२- १४॥ प्रत्यूषे त्यस्य च भवति, तत्संनियोगे च षम्य हो वा भवति ॥ पच्चूहों । पच्चूसी || अर्थ:- 'प्रत्यूष' शब्द में स्थित संयुक्त व्यञ्जन 'त्य' का 'च' होता है। इस प्रकार 'व' की प्राप्ति होने पर अन्तिम 'ष' के स्थान पर विकल्प से 'ह' की प्राप्ति होती है । जैसे:- प्रत्यूषः पच्चूहो अथवा पच्चूसो ॥ प्रत्यक्षः संस्कृत रूप हैं । इसके प्राकृत रूप पच्चूहो और पच्चूसो होते हैं। इनमें सूत्र संख्या २-७३ से 'र' का लोप; २- १४ से संयुक्त व्यंजन 'त्य' के स्थान पर 'च' की प्राप्ति से प्राप्त 'च' को द्वि 'च्च' की प्राप्ति २ - ९४ से 'प' का प्रथम रूप में विकल्प से 'ह' और द्वितीय रूप में वैकल्पिक पक्ष होने से १-२६० 'ष' का 'स' एवं ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थार पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से पचूहों और पहचूसो दोनों रूपों की सिद्धि हो जाती है ।। २-१४॥ स्व-व-द्वयां च छ ज झाः कवित् ॥२- १५॥ एषां यथासंख्यमेते क्वचित् भवन्ति ॥ भुक्त्वा भोच्छा || ज्ञात्वा । गुच्चा ॥ श्रुत्वा | सोच्चा ॥ पृथ्वी । पिच्छी || विद्वान् । विज्जो || बुद्ध्वा । बुझा || I भोच्चा सयलं पिछि विज्जं बुज्झा अणण्णय-ग्गामि । चईऊण तवं काउं सन्तो पत्तो सिवं परमं ॥ अर्थ :-- यदि किसी शब्द में 'त्व' रहा हुआ हो तो कभी-कभी इस संयुक्त व्यञ्जन 'स्व' के स्थान पर 'च' होता है, 'व' के स्थान पर 'द' होता है; 'द्व' के स्थान पर 'ज' होता है और 'य' के स्थान पर 'झ' होता है । मूल सूत्र में 'क्वचित्' लिखा हुआ है, जिसका तात्पर्य यही होता है कि 'स्व' '' '' और 'ध्व' के स्थान पर क्रम से च, छ, ज और क की प्राप्ति कभी कभी हो जाती है। जैसे:- 'त्व' के उदाहरणः- मुक्त्वा=भोच्चा || ज्ञात्वा =णच्चा । श्रुत्वा = सोच्चा || 'ध्व' का उदाहरणः पृथ्वी पिच्छी ॥'४' का उदाहरणः - विद्वान् विज्जो || 'ध्व' का उदाहरण: - बुद्ध्वा - बुल्झा || इत्यादि || गाथा का हिन्दी अर्थ इस प्रकार है: -- दूसरों को प्राप्त हुई है-ऐसी - (ऋद्धिवाले) हे शांतिनाथ ! (आपने सम्पूर्ण पृथ्वी का ( राज्य ) भोग करके ( सम्यक ज्ञान प्राप्त करके ( एवं ) तपस्या करने के लिये (राज्य को छोड़ करके अंत में परम कल्याण रूप (मोक्ष-स्थान) को प्राप्त किया है । (अर्थात् आप सिद्ध स्थान को पधार गये हैं ) | क्या कृदन्त रूप है। इसका प्राकृत रूप मोठचा होता है। इसमें सूत्र संख्या ९-११६ से 'व' -3 +
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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