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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [ २५ -ommummyanamaintainiandidisi लुग भाजन-दनुज-राजकुले जः सस्वरस्य न वा ।। १-२६७ ॥ पु मस्चरजकारस्य लुग बा भवति ।। भाणं भायणं ॥ दणु -बहो । दणु-वहो । रा-उल्लं राय-उलं ।। अर्थ:-'भाजन, दनुज और राजकुल' में रहे टुप 'स्वर सहित अकार का' विकल्प से लोप होता है । जैसे:-भाजनम-भाणं अथथा भायणं ।। दनुज-वधः-दगु-वहो अथवा दणुअ-बहो और राजकुलम् रा-उलं अथवा राय-उलं ।। इन उदाहरणों के रूपों में से प्रथम रूप में स्वर सहित 'अ' व्यञ्जन का लोप हो गया है। भाजनम् संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप भाणं और भायणं होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र मंख्या १-२६७ से 'ज' का विकल्प से लोपः १-२२८ से 'न' का 'ण'; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय का 'म्' और १.२३ से प्राप्त म्' का अनुस्वार होकर प्रथम रूप भाणं सिद्ध हो जाता है । द्वितीय रूप में सूत्र संख्या १.१७७ से 'ज' का लोप; १-१८० से लोप हुए ‘ज्' में से शेष रहे हुए 'अ' को 'य' की प्राप्ति और शेप साधानका प्रथम रूप के समान ही होकर द्वितीय रूप भायणं भी सिद्ध हो जाता है। दनुज-वधः संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप दणु-बहो और दगुअ-वहीं होते हैं । इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या १-२२८ से न का 'ण'; १.२६. से विकल्प से 'क' का लोप; १-१८७ से 'ध' का 'ह और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक बचन में अकारान्त पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप दगु-यही सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप में १-१७७ से 'ज्' का लोप और शेष साधनिका प्रथम रूप के समान ही होकर द्वितीय रूप दणुअ-वहो भी सिद्ध हो जाता है। राजकुलम् मंस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप रा उलं और राय-उलं होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या १-२६७ से विकल्प से 'ज' का लोप; १-१७७ से 'क्' का लोप, ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नमक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म् प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म' का अनुस्वार होकर प्रथम रूप रा- उलं सिद्ध हो जाता है । द्वितीय रूप में सूत्र-संख्या १-१४७ से 'ज्' का लोप; १-१८० से लोप हुए 'ज' में से शेष रहे 'अ' को 'य' की प्राप्ति और शेष साधनिका प्रथम रूप के समान ही होकर द्वितीय रूप राय-उल भी सिद्ध हो जाता है ।।१-२६॥ व्याकरण-प्राकारागते कगोः ॥१-२६८।। एषु को गश्च सम्वरस्य लुग वा भवति ॥ वारणं वायरणं । पारो पायारो || आमो आगयो ।।
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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