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________________ २८२ ] * प्राकृत व्याकरण * दृश मखः संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप दह-मुहो और दसमुहो होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या १-२६२ से विकल्प से 'श' का 'ह' और द्वितीय रूप में १-२६० से 'श' का 'स'; १-१८७ से दोनों रूपों में 'ख' का 'ह' तथा ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुग्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की दोनों रूपों में प्राप्ति होकर क्रम से दह-मुहो और इस मुही रूपों की सिद्धि हो जाती है। __ दृश-बलः संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रुप दह चलो और दम बलो होते हैं । इनमें सूत्र संख्या १-२६२ से प्रथम रूप में चिकल्प से 'श' का 'ह' और द्वितीय रूप में १-०६० से 'श' का 'स' तथा ३-२ से दोनों रूपों में प्रथमा विभक्ति कं एक वचन में श्रकारान्त बुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्रो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से वह बलो एवं इस बलो रूपों की सिद्ध हो जाती है। दशरथः संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप दहरहो और दसरहो होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या १.२६२ से विकल्प से 'श' का 'ह' और द्वितीय रूप में १-२६० से 'श' का 'स'; १-५८७ से दोनों रूपों में 'थ' का 'ह' तथा ३.९ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति दोनों रूपों में होकर क्रम दहरही और दसरहो रूपों की सिद्धि हो जाती है। एआरह रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-२१९ में की गई है। बारह रूप की सिद्धि सूत्र-मंख्या १-२१९ में की गई है। तेरह रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१६५ में की गई है। पाषाणः संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप पाहाणो और पासाणो होते हैं । इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या १-२६२ से विकल्प से 'श' का 'ह' और द्विनीय रूप में १-२६० से 'श' का 'स' तथा ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति दोनों रूपों में होकर क्रम से पाहाणो एवं पासाणी रूपों की सिद्धि हो जाती है १-२६२ ।। दिवसे सः॥ १-२६३ ॥ दिवसे सस्य हो वा भवति ॥ दिवहो । दिवसो ।। अर्थः-संस्कृत शब्द 'दिवस' में रहे हुए 'स' वर्ण के स्थान पर विकरूप से 'इ' होता है । जैसे:दिवस:-दिवहो अथवा दिवसी । दिवसः संस्कृत रूप है इसके प्राकृत रूप दिवहो और दिवसो होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-२६३ से 'स' का विकल्प से 'ह' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में 'सि'
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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