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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित - [२८१ घोषयति संस्कृत सकर्मक क्रियापद का रूप है । इसका प्राकृत रूप घोसा होता है । इसमें सूत्र संख्या १-२६. से प का 'म'; ४.२३६ से संस्कृत धात्विक गण-बोधक विकरण प्रत्यय 'श्रय' के स्थान पर अ' की प्राप्ति और ३-१३६ मे वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एक वचन में संस्कृत प्रत्यय 'ति' के स्थान पर प्राकत में 'इ' प्रत्यय को प्राप्ति होकर घोसह रूप सिद्ध हो जाता है। शेषः संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप सेसो होता है। इसमें सूत्र-मंख्या १-२६० से दोनों 'शकार' 'षकार के स्थान पर 'स' और 'स' को प्राप्ति तथा ३-९ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर सेसो रूप सिद्ध हो जाता है। विशेषः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप विसेसी होता है । इसमें सूत्र संख्या १-२६० से दोनों 'शकार', 'पकार' के स्थान पर 'स' और 'स' की प्राप्ति तथा ३.२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर विससो रूप सिद्ध हो जाता है। ॥ १-२६० 4 . । स्नुषायां रहो न वा ॥ १.२६१ ।। स्नुषा शब्दे षस्य एहः गाकाराक्रान्तो हो वा भवति ॥ सुशहा । सुसा ॥ अर्थ:-संस्कृष्ट शब्द 'स्नुषा' में स्थित 'घ' वर्ण के स्थान पर हलन्त 'ण' सहित 'ह' अर्थात 'एह' को विकल्प से प्राप्ति होती है । जैसे:-तुषा-सुरहा अथवा सुसा ॥ स्नुषा संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप सुरक्षा और सुसा होते हैं। इनमें सूत्र संख्या २०४८ से 'न' का लोप; १-२६१ से प्रथम रूप में 'ष के स्थान पर विकल्प से रह की प्राप्ति और द्वितीय रूप में ६-२६० से 'ष' का 'स' होकर क्रम से सुण्हा और मसा दोनों रूपों की सिद्धि हो जाती है। ॥ १-२६१ ।। दश-पाषाणे हः ॥ १.२६२ ।। दशन शब्दे पाषाण शब्दे च शोर्यथादर्शन हो या भवति ॥ दह-महो दस महो। दह-बलो दस वलो । दह- रहो दस रहो । दह दस । एधारह । बारह । तेरह । पाहायो पासाणो । भर्थः-देशन शब्द में और पापाश शब्द में रहे हुए 'श' अथवा 'ष' के स्थान पर विकल्प से 'ह' होता है। ये शब्द दशन और पाषाण चाहं समास रूप से रहे हुए हों अथवा स्वतंत्र रहे हुए हो; तो मी इनमें स्थित 'श' का अथवा 'ष' का विकल्प से 'ह' हो जाता हैं। ऐसा तात्पर्य वृत्ति में उल्लिखित 'पथादर्शन' शब्द से जानना । जैसे:-दश-मुख:-प्रह-मुहो अथवा दस मुहो । दश-बलदह बलो अथवा रस बलो ।। वशरथः-दहरहो अथवा पसरहो ॥ दशन्दा अथवा दसा. एकादश-एआरह ।। द्वादश-तेरह !| पाषाण पाहाणो पासायो ।। . . . . . . .
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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