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________________ २७८ ] * प्राकृत व्याकरण* की प्राप्ति और ३-२ से प्रश्वमा विभक्ति के वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' त्यय की प्राप्ति होकर शूल भनी रूप की सिद्धि हो जाती है। ॥१-२५५ ।। लाहल-लांगल-लांगुले वादे णः ॥ १-२५६ ॥ एषु श्रादेर्लस्य णो वा भवति ।। णाहणो लाहलो ॥ गङ्गले लगलं । गङ्ग लं । लङ्गलं ॥ अर्थ:-लाहल, लाङ्गल और लाजल शब्दों में रहे दुप. श्रादि अक्षर 'त' का विकल्प से 'ण' होता है। जैसेः- लाहल:-णाइलो अथवा लाहलो । लाङ्गलम् गङ्गलं अथवा लङ्गलं । लाङ्ग लम-गङ्गलं अथवा लङ्ग लं ।। लाहल: संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप ण हलो और लाहली होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १.०५ से श्रादि अक्षर 'ल' का विकल्प से 'ण' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से जाहलो और लाहलो दोनों रूपों को सिद्धि हो जाती है। 'लाङ्गलम् संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप णङ्गल और लङ्गलं होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-२५६ से आदि अक्षर 'ल' का विकल्प से 'ण'; १-८४ से दीर्घ स्वर 'आ' के स्थान पर 'अ' की प्रापि, ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक बचन में अकारान्त नपुसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर क्रम से मङ्गलं और लङ्गलं दोनों रूपों की सिद्धि हो जाती है। लाज लम् संस्कृत रूप है। इसके प्रोकृत रूप णङ्गलं और लङ्गलं होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-२५६ से शादि अक्षर 'ल' का विकल्प से 'ण'; १-२४ से दीर्घ स्वर 'आ' के स्थान पर 'श्र की प्राप्ति, ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्न नमक लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर कम से णङ्गलं और लङ्गलं दोनों रूपों की सिद्धि हो जाती है। १-२५६ ॥ ललाटेच ॥१-२५७ ॥ ललाटे च श्रादे लस्य णो भवति ।। चकार आदेरनुवृत्त्यर्थः ।। णिडालं । णडालं ॥ अर्थ:-ललाट शम्द में आदि में रहे हुए 'ल' का 'ण' होता है । मूल-सूत्र में 'च' अक्षर लिखने की। तात्पर्य यह है कि सूत्र-संख्या १-२५६ में 'आदि' शब्द का उल्लेख है; उस 'आदि' शब्द को यहाँ पर भी समझ लेना, तदनुसार 'ललाट' शब्द में जो दो 'लकार' है: उनमें से प्रथम 'ल' का हो 'ण' होता है न
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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