SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 301
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित [ २७७ निष्पुरः संस्कृत विशेषण है । इसके प्राकृत रूप निट ठुलो और निट लुरो होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या २-७७ से 'ए का लोप; २-८६ से 'ट्' को द्वित्व 'ठ' को प्राामे, २-६० से प्राप्त पूर्व' को 'ट्' को प्राप्ति; १-२५४ से र' का 'ल' तथा द्वितीय रूप में १-२ से 'र' का 'र' ही और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर '' प्रत्यय की प्राप्ति होकर दोनों रूप निदवली एवं निदरो क्रम से सिद्ध हो जाते हैं। चरण-करण म संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप घरण करणं ही होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२३ से 'म' का अनुस्वार होकर धरण-करणं रूप सिद्ध हो जाता है। भमरो रूप की सिद्भि सूत्र संख्या १-२४४ में की गई है। द्वादशाङ्ग संस्कृत सप्तम्यन्त रूप है। इसका आर्ष-प्राकृत में दुवालसन रूप होता है । इसमें सूत्र संख्या १-5 से 'द्वा' को पृथक पृथक करके हलन्त 'द्' में 'उ' को प्राप्ति; १-२५४ की वृत्ति से द्वितीय 'द्' के स्थान पर 'ल की प्राप्तिः १-२६० से 'श' का 'स'; १-८४ से प्राप्त 'सा' में स्थित दीर्घस्वर या को 'श्र' की प्राप्ति; और ३.११ से सप्तमी विभक्ति के एक बनन में अकारान्त में '' प्रत्यय की प्राप्ति होकर आर्ष-प्राकृत में दुवालसंगे रूप की सिद्धि हो जाती है। यदि 'द्वादशाङ्ग' ऐसा प्रथमान्त संस्कृत रूप बनाया जाय तो सूत्र संख्या ४-२८७ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ए' प्रत्यय की प्राप्ति होकर आर्ष-प्राकृत में प्रथमान्त रूप दुवालसंगे सिद्ध हो जाता है । १-२५४ स्थूले लो रः ॥ १-२५५ ॥ स्थूले लस्य रो भवति ॥ थोरं । कथं धूलभहो । स्थूरस्य हरिद्रादि लत्वे भविष्यति ॥ अर्थ:-'स्थूल' शब्द में रहे हुए 'ल' को 'र' होता है । जैसेः स्थूलम्-थोरं ।। प्रश्नः-'थूल भदो' रूप की सिद्धि कैसे होती है ? उत्तरः - 'थूल भद्दो' में रहे हुए 'थूल' की प्राप्ति स्थूर' से हुई है; न कि 'स्थूल' से; तदनुमार सूत्र संख्या १-२५४ से 'स्थूर' में रहे हुए 'र' को 'ल' की प्राप्ति होगी; और इस प्रकार 'स्थूर' से 'थूल' को प्राप्ति हो जाने पर 'स्थूलम् धोरं' के समान स्थूर' में रहे हुए 'अ' को 'श्री' की प्राप्ति की आवश्यकना थोरं रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१२४ में की गई है। स्थूर भद्रः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप थूल भदो होता है । इसमें सूत्र संख्या २-७७ से 'स' का लोपः १-२५४ से प्रथम 'र' का 'ल';२.८० से द्वितीय 'र' का लोप; २.८ से 'द्' को द्वित्व 'ए'
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy