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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [२६६ यष्ट्यां लः॥ १-२४७ ॥ यष्ट्यां यस्य लो भवति ॥ लट्ठी 1 चेणु-जही । उच्छु-लट्ठो । महु-लट्ठी ॥ अर्थः-यष्टि शब्द में स्थित 'य' का 'ल' होता है । जैसे:-यष्टि: लट्ठी ।। वणु-यष्टि: वेणु-लट्ठी ।। इलु-यष्टिः-उच्छु-लट्ठी ।। मधु-यष्टिः महु-लट्ठी ।। यष्ठिः - संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप लट्ठी होता है । इसमें सूत्र संख्या १-२४७ से 'य' का 'ल ; २-२४ से 'ष्ट' को 'ठा; २-८६ से प्रान 'ठ' का द्विव 'छ'; २-६० से प्रान पूर्व ' का 'द', और ३-१६ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में इकारान्त स्त्रीलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हस्थ स्वर 'इ' एवं विर्ग को दीर्घ स्वर 'ई' को प्राप्ति होकर लल्ली रूप सिद्ध हो जाता है। ___णु-याष्टिः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप वेषण-लट्ठी होता है। इस रूप की सिद्धि, ऊपर सिद्ध । व ये हुए 'लट्ठी' रूप के समान ही जानना ।। शु-यदि:-संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप उकछु-लट्ठी होता है । इसमें सूत्र संख्या १.६५ से 'इ' को 'उ' की प्राप्ति; २-३ से 'क्ष' को 'छ' की प्राप्ति; २-८६ से प्राप्त 'छ' को द्वित्व 'छछ'; ६० से प्राप्त पूर्व 'छ' को च' की प्राप्ति और शेष मिद्धि उपरोक्त लट्ठो के समान ही होकर उच्छु लट्ठी रूप की सिद्धि हो जाती है। मधु-याष्टिः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप मजु-भट्ठी होता है। इसमें सूत्र संख्या १.१८७ से 'ध' का ह' और शेष मिद्धि उपरोक्त लट्ठी के समान ही होकर मनु-लाठी रूप को मिद्धि हो जाती है। वोत्तरीयानीय-तीय-कृये ज्जः ॥ १-२४८ ॥ उत्तरीय शब्दे अनीयतीय कृद्य प्रत्ययेषु च यस्य द्विरुक्तो जो वा भवति ।। उत्तरिज्ज उत्तरीअं ॥ अनीय । करणिज्ज-करणीअं ॥ विम्हणिज्ज विम्हणणीअं !! अवणिज्ज । जवणीअं ।। तीय । बिइज्जो बीयो । कृद्य | पेज्जा पेया॥ अर्थ:-उत्तरोय शम्न में और जिन शयों में 'अनीय', 'अथवा 'नीय अथवा कृदन्त वाचक 'य प्रत्ययों में से कोई एक प्रत्यय रहा हुश्रा हो तो इसमें रहे हुा. 'य' वर्ग का द्वित्व 'ज' की वैकल्पिक रूप से प्राप्ति हुआ करती है । जैसे:-उत्तरीयम् उत्तरिज अथवा उत्तरीधे ।। 'अनीय' प्रत्यय मे संबंधित उदा. हरण इस प्रकार हैं:-करणीयम् करणिज्ज अथवा करणीअं ॥ विस्मयनीयम-विम्याणिज्ज अथवा विम्हयणीअं । यापनीयम् जवणिज्जं अथवा जवणीअं ।। 'तीय' प्रत्यय का उदाहरण:-द्वितीयः-बिहजो
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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