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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * कोरवा होता है । इसमें सत्र संख्या ३-४ से प्रथमा विभक्ति के बहु वचन में अकारान्त पुल्लिग में प्राप्त 'जस्, प्रत्यय का लोप और ३-१२ से प्राप्त एवं लुप्त 'जस्' प्रत्यय के पूर्व में अरय हस्व स्वर 'अ' को वीर्घ स्वर मा की शामिल होकर कोरा का सितम हो माल : १. सा बहुलम् ॥१२॥ बहुलम् इत्यधिकृतं वेदितव्यम् आशास्त्रपरिसमाप्तः ॥ ततश्च । कचित् प्रवृत्तिः क्वचिदप्रवृत्तिः क्वचिद् विभाषा कचिद् अन्यदेव भवति । तच्च यथास्थानं दर्शयिष्यामः ।। __ अर्थः-प्राकृत-भाषा में अनेक ऐसे शव्य होते हैं। जिनके एकाधिक रूप पाये जाते है। इनका विधान इस सूत्र से किया गया है । तदनुसार इस व्याकरण के चारों पाद पूर्ण हो, यहाँ तक इस पत्र का अधिकार क्षेत्र जानना इस सूत्र को कहीं पर प्रवृत्ति होगी; कहीं पर अप्रति होगी; कहीं पर वैकल्पिक प्रवृत्ति होगी और कहीं पर कुछ नवीनता होगी | यह सब हम यथास्थान पर बतलागे ।।१-२|| आर्षम् ॥१-३॥ ऋषीणाम् इदम् श्रापम् । आर्ष प्राकृतं बहुलं भवति । तदपि यथास्थानं दर्शयिष्यामः । आर्षे हि सर्व विधयो विकल्प्यन्ते ।। अर्थ:-जो शब्द अषि-भाषा से संबंधित होता है; वह शब्ब 'आर्य' कहलाता है। ऐसे आर्ष शम्म प्राकृत भाषा में बहुतायत रूप से होते हैं । उन सभी का दिग्दर्शन हम यथा स्थान पर आगे ग्रंथ में बतलायेंगे | माप-शनों में सूत्रों द्वारा सानिका का विधान वैकल्पिक रूप से होता है । तदनुसार कभी कभी तो आर्ष-शम्वों को साघनिहा सूत्रों द्वारा हो सकती हैं और कभी नहीं भी हुआ करती है । अतः इस सम्बन्ध में वैकल्पिक-विधान जानता ॥१-३।। दीर्घ-हस्त्रौ मिथो वृत्तौ ॥१-४॥ वृत्तौ समासे स्वराणां दीर्घ हस्वौ बहुलं भवतः । मिथः परस्परम् ।। तत्र हस्वस्य दीर्घः ॥ अन्तर्वेदिः । अन्तावेई ।। सप्तविंशतिः । ससावीसा ॥ कचिन्न भवति । जुबई-अणो ॥ कचिद् विकल्पः । वारी-मई वारि-मई ॥ भुज-यन्त्रम् | भुया यन्तं भुश्र-यन्तं ॥ पतिगृहम् । पई हर पइ हरं । वेलू-वणं वेलु-वणं ।। दीवस्य हस्त्रः । निअम्ब सिल-खलिअ-वीइ-मालस्म ॥ क्वचिद् विकल्पः । जउँण-यडं जाणा-यडं । नह-सोतं नई-सोत्तं । गोरि-हरं गोरी-हरं । बहु-मुहं वहू-मुहं ॥ वर्ष--समासगत भावों में रहे हए स्वर परस्पर में दस्व के स्थान पर वो और वीर्घ के स्थान पर हस्थ बक्सर हो आया करते हैं। हस्व स्वर के घोघं स्वर में परिणत होने के उदाहरण इस प्रकार :
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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