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________________ २०६ ] * प्राकृत व्याकरण * आकुत्र्वनम् संस्कृत रूप है । इसका आर्ष-प्राकृत रूप श्रावणं होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१७७ से 'कू' का लोप; १-१७७ की वृत्ति से 'च' के स्थान पर 'ट' को प्राप्तिः १-३० से 'ब' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति: १-२२८ से 'न' को 'ण' की प्राप्ति; ३ २५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर आउट रूप सिद्ध हो जाता है | ॥ १-१७७ ॥ यमुना-चामुण्डा का मुकातिमुक्त के मोनुनासिकच ॥ १-१७८ ॥ ए मस्य लुग्भवति, लुकि च सति मस्य स्थाने अनुनासिको भवति ॥ जउँगा | चाउँण्डा । का उँभो । अखिउँ तयं ॥ क्वचिन्न भवति । अमु तयं । श्रमुत्तयं ॥ अर्थ – यमुना, चामुण्डा, कामुक और अतिमुक्तक शब्दों में स्थित 'म्' का लोप होता है और लुप्त हुए 'म्' के स्थान पर 'अनुनासिक' रुप की प्राप्ति होती है। जैसे-यमुना = जउँणा | चामुण्डा = | कामुकःकाउँ । अतिमुक्तकम् - अतिथं । कभी कभी 'म्' का लोप नहीं होता है और तदनुसार अनुनासिक की भी प्राप्ति नहीं होती है । जैसे- प्रतिमुक्तकम् अहमुतयं और श्रमुत्तरं ॥ इस उदाहरण में अनुनासिक के स्थान पर वैकल्पिक रूप से अनुस्वार की प्राप्ति हुई है । जउँगा रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १-४ में की गई है । चामुण्डा संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप चाउँण्डा होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१७८ से 'म्' का लोप और इसी सूत्र से अनुनासिक की प्राप्ति होकर चाउँण्डा रूप सिद्ध हो जाता है । कामुकः संस्कृत रूप है इसका प्राकृत रूप का उँधो होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१७८ से 'म्' का लोप और इसी सूत्र से शेष 'उ' पर अनुनासिक की प्राप्ति; १-७७ से 'कू' का लोप और ३-० से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर काउं रूप सिद्ध हो जाता है । श्रणिउँतयं, श्रइमु तयं और अहमुत्तयं रूपों की सिद्धि सूत्र संख्या १-२६ में की गई है । ।।१-१७८।। नावर्णा पः ॥ १-१७६ ॥ अवर्णात् परस्यानादेः पस्य लुग् न भवति ॥ सबहो । साथी || अनादेरित्येव परउड्डो || अर्थ: यदि किसी शब्द में 'प' आदि रूप से स्थित नहीं हो तथा ऐसा वह 'प' यदि 'अ' स्वर के पश्चात् स्थित हो तो उस 'प' व्यञ्जन का लोप नहीं होता है । जैसे शपथ:-सवहो । शापः - सावो । प्रश्न- 'अनादि रूप से स्थित हो ऐसा क्यों कहा गया है ? ,
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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