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________________ २०० * प्राकृत व्याकरण * . वेषः संस्कृत इंप है। इसका प्राकृत रूप देवो होता है । इसमें सूत्र संख्या ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्रो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर देखो रूप सिर हो जाता है। डामयः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप वाणवी होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२२८ से 'न' का 'ण' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्जिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर ढ़ाणको रूप सिद्ध हो जाता है। शंकरः संस्कृत रुप है। इसका प्राकृत रूप संकरो होता है। इसमें सूत्र-संख्या :-२६० से 'श' को 'स' की प्राप्ति; १-२५ से 'हु' का अनुस्वार; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर संकरो रूप सिद्ध हो जाता है। संगमः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप संगमो होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर संगमो रूप सिद्ध हो जाता है। नक्तंचरः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप नचरो होता है । इसमें सूत्र-संख्या २-४ से 'त्' का लोप; २-८६ से शेष 'क' का द्वित्व 'क' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक बचन में पुल्लिग 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'नो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर नक्कंघरो रुप सिद्ध हो जाता है। __ धनञ्जयः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप धणंजो होता है। इसमें सूत्र-संख्या 1-२२८ से 'न' को 'ण' की प्राप्ति; १-२५ से 'क' को अनुस्वार की प्राप्ति; १-५४७ से 'य का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्रो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर षणंजओ रूप सिद्ध हो जाता है। विषतपः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप विसंतवो होता है। इसमें सत्र संख्या २-७७ से 'द्' का लोप; १-२६० से 'ष' को 'स' की प्राप्ति १-२३१ से 'प' को 'व' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्रो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर विस्तो रुप सिस हो जाता है। पुरंदर: संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप पुरंदरो होता है। इसमें सत्र संख्या ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर पुरंदरो रूप सिद्ध हो जाता है। संवतः संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप संबुडो होता है । इसमें सूत्र संख्या १-१३१ से 'ऋ' को 'उ' की प्राप्ति; १-२०६ से 'त' को 'ड' की शप्ति और ३.२ से प्रथमा विभक्ति के एक
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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