SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 223
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ સરસ્વતિહેન મણીલાલ શાહ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [१६8 प्रयाग जलम् संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप पयागजलं होता है। इसमें मूत्र संख्या २-७ से '' का लोप और १-२३ से अन्त्य 'म्' का अनुस्वार होकर पयाग जल रूप सिद्ध हो जाता है। मुगतः संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप सुगओं होता है । इसमें सूत्र संख्या१-१७७ से 'न् का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक बचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर सुगओ रूप सिद्ध हो जाता है। ____ अगुरुः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप अगुरू होता है। इसमें सूत्र संख्या ३-४ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में उकारान्त पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हस्व 'उ' को दीर्घ 'अ' को प्राप्ति होकर अगुरू रूप सिद्ध हो जाता है। सचाय संस्कृत विशेषण रूप है । इसका प्राकृत रूप सचाव होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२३१ से 'प' को 'व' की प्राप्ति; ३-५ से द्वितीया विभक्ति के एक वचन में 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और ५-०३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर सचार्य रूप मिस हो जाता है। _____ व्यजनम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप विजणं होता है। इसमें सूत्र संख्या २-४८ से 'य' का लोप; -४६ से शेष 'ध' में स्थित 'अ' को 'इ' की प्राप्ति; १-२२८ से 'न' को 'ए की प्राप्ठि; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और ५.२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर पिजणं रूप सिद्ध हो जाता है। सुतारम, संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप सुतारं होता है। इसमें सूत्र संख्या ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक पचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १.३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर मुतारं रूप सिद्ध हो जाता है।। विदुरः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप विदुरो होता है। इसमें सूत्र संख्या ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'बो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर बिदुरो रूप सिद्ध हो जाता है। सपापम् संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप सपावं होता है । इसमें सूत्र संख्या १-२३६ से '4' को 'व' की प्राप्ति, ३:२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुम्वार होकर सपा रूप सिर हो जाताई। समवायः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप समाओ होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१०० से 'य' का लोप और ३-२ से प्रभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'भो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर समममो रूप सिर हो जाता है।
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy