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________________ १६८ * प्राकृत व्याकरण * कैरवम् संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप कहरवं और फेरवं होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या १-१५२ से 'ऐ के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'अई' का श्रादेश; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक बचन में नएसक लिंग 'मि' प्रत्यरा के स्थान पर, 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर प्रथम रूप "कहर" सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप केरवं में सूत्र संख्या १.१४८ से 'ऐ के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति; ३.२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचम में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर द्वितीय रूप फेरवं सिद्ध हो जाता है। अषण: सस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप वइसषणो और वेसवणो होते हैं । इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या १-५५२ से रे' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'अई का आदेश; २-६ से 'र' का लोप; १.२६० से शेष 'श' का 'स'; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन से पुलिं ग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर बहसवणो रूप सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप वेसवणो में सूत्र संख्या १-५४८ से ऐ के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति और शेष सिद्धि उपरोक्त वइसवरण के अनुसार होकर वेसषणी भी सिद्ध हो जाता है । वैशम्पायमः संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप वइसम्पायपरे और वेसम्पायरणी होते हैं । इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या १-१५२ से 'ऐ' के स्थान पर बैकल्पिक रूप से 'आई' का आदेश; १-०६० से 'श' का 'स'; १-२२८ से 'न' का 'ए', और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप बहसम्पायणो सिद्ध हो जाता है। - द्वितीय रूप वेसम्पायणो में सूत्र संख्या १-६४८ से 'ऐ' के स्थान पर 'ए' की प्राप्रि; होकर वेसम्पायणी रूप सिद्ध हुआ। शेष सिद्धि प्रथम रूप के समान ही जानना । तालिकः संस्कृत विशेषण है । इसके प्राकृत रूप वालिओ और वेश्रालियों होते हैं। इनमें से प्रथम रुप में सूत्र-संख्या -१५२ से 'ऐ' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'अई' का श्रादेश, १-१७५ से 'म' और 'क् का लोप; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप पालिओ सिद्ध हो जाता है। . द्वितीय रूप वेथालियो में सूत्र-सख्या १-१४८ से 'ऐ' के स्थान पर ए की प्राप्ति और शेष-सिद्धि प्रथम रूप के समान ही जानना। यो विभालिभो रुप सिद्ध हुआ । शिकम् संस्कृत रुप है। इसके प्राकृत रूप वइसिध और वेसिअं होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या १-१५९ से 'ऐ' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से प्राइ' का आदेश; १.६० से 'श' का 'स'; १-१४७ से 'क' का लोप; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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