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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित [१०१ हे रूप सिद्ध हो जाता है । द्वितीय रूप में-२-११२ से विकल्प से 'दू' 'उ' का 'आगम'; १-१७७ से 'व्' का लोप; ३-२५ से प्रथमा के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर दुआर सिद्ध हो जाता है। तृतीय रूप में-१-१७७ से 'व्' का लोप; ३- २५ से प्रथमा के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति, और १-२३ से करार होकर वारं सिद्ध हो जाता है। चतुर्थ रूप में-२-७७ से 'द्' का लोप; ३-२५ से प्रथमा के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'धार' सिद्ध हो जाता है । नैरयिकः संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रुप नेरइओ होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१४८ 'ऐ' का 'ए' ९-१७७ से 'य्' और 'क' का लोप; ३ - २५ से प्रथमा के एक वचन में पुल्लिंग में सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय होकर मेरइओ रूप सिद्ध हो जाता है । नार्किकः संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप नारद्द होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१७७ से दोनों 'क' का लोपः ३–२५ से प्रथमा के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'खो' प्रत्यय होकर नारी रूप सिद्ध हो जाता है । पश्चात कर्म संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप पच्छे कम्मं होता है। । इसमें सूत्र संख्या २-२१ से '' का 'छ' २-८६ से प्राप्त 'छ' का द्वित्व 'छल'; २-६० से प्राप्त पूर्व 'छ' का 'च्' १-७६ की वृत्ति से 'आ' का 'ए' ९-११ से 'तू' का लोप; २-७६ से 'र्' का लोप २-८६ से 'म' का द्वित्व 'न्म' ३–२५ से प्रथमा के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म' का अनुस्वार होकर पच्छे कम्मं रूप सिद्ध हो जाता है । असहाय्य संस्कृत विशेषण है। इसका प्राकृत रूप श्रसहेज्ज होता है। इसमें सूत्र संख्या - १७६ की वृति से 'आ' का 'ए' २-२४ से 'य' का 'ज' से प्राप्त 'ज' का द्वित्व 'ज्ज'; यों असहेज्ज रूप सिद्ध हो जाता है। देवासुरी का संस्कृत और प्राकृत रूप सामान ही होता है ॥ ७६ ॥ पारापते रो वा ॥ १-८० ॥ पारापत शब्दे रस्थस्यात एद् वा भवति || पारेव पाराव || अर्थ:-पारापत शब्द में 'ए' में रहे हुए 'आ' का विकल्प से 'ए' होता है। जैसे- पारापतः = पारेऔर पाव | पारापतः संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप पारेवओ और पाराव होते हैं । इनमें सूत्र संख्या- ९-८० से 'रा' के 'आ' को विकल्प से 'ए' १-२३१ से 'प' का 'च'; १-१७७ से 'तू' का
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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