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________________ १०.] * प्राकृत व्याकरण * आर्या-संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप अज्जू होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-४७ से 'या' के 'श्रा का 'ऊ'; २-२४ से 'य' का 'ज'; २-८६ से प्राप्त 'ज' का द्वित्व 'अ'; १-८४ से आदि 'या' का 'अ'; ३-१६ से स्त्रीलिंग में प्रथमा के एक वचन में 'सि' प्रश्य के स्थान पर अन्त्य स्वर की दीर्घता-होकर अर्थात् 'ऊ' का 'ऊ' ही रहकर अज्जू रूप सिद्ध हो जाता है। आर्या संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप अज्जा होता है । इसमें सूत्र संख्या २-२४ से 'य' का 'ज'; २-४ से प्राप्त 'ज' का द्वित्व 'ज्ज'; १-८४ से आदि 'श्रा' का 'अ'; सिद्ध हेम व्याकरण के २-४-१८ के अनुसार स्त्रीलिंग में प्रथमा के एक यचन में प्राकारान्त शठन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'या' प्रत्यय की प्राप्ति होकर अज्जा रूप सिद्ध हो जाता है ।। ७७ ।। एद् ग्राह्ये ॥ १-७८ ॥ प्राय शन्दे श्रादेरात् एद् भवति ।। गेज्म । अर्थ:-प्राह्य शब्द में श्रादि 'श्रा' का 'ए' होता है । जैसे-ग्राह्यम् = गेज्मं । ग्राह्यम् संस्कृत विशेषण है । इसका प्राकृत रूप गेऽमं होता है। इसमें सूत्र संख्या २.७६ से 'र' का लोप; १-७८ से आदि 'या' का 'ए';२-२६ से 'ह्य' का 'झ'; २-८८ से प्राप्त 'झ' का द्वित्व 'झम'; २.६० से प्राप्त पूर्व ' का 'ज' ३-२५ से प्रथमा के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का. अनुस्वार होकर गेज्ॉ रूप सिद्ध हो जाता है । ७८ !! द्वारे वा ॥ १-७६.॥ द्वार शब्दे श्रात एद् बा भवति ।। देरे । पक्षे । दुआरं दारं वारं ॥ कर्थ नेरइश्रो नारइयो । नैरयिक नारयिक शब्दयो भविष्यति ॥ आर्षे अन्यत्रापि । पच्छेकम्म । असहेज्ज देवासुरी ॥ ___ अर्थ-द्वार शब्द में 'श्रा' का 'ए विकल्प से होता है। जैसे-द्वारम् =धेरै । पक्ष में-दुश्रारं दारं और वारं जानना । नेरहो और नारइयो कैसे बने हैं ? जसर 'नैयिक' ऐसे मूल संस्कृत शब्द से नेरइओ बनता है और 'नायिक' ऐसे मूल संस्कृत शब्द से 'नारहो' बनता है। आर्ष प्राकृत में अन्य शब्दों में भी 'आ' का 'ए' देखा जाता है । जैसे—पश्चात कर्म = पच्छे कम्मं । यहां पर 'पा' के 'श्रा' का 'ए' हुआ है। इसी प्रकार से असहाय्य देवासुरी=असहेज देवासुरी। यहां पर 'हा' के 'श्रा' का 'ए' देखा जाता है। धारम:-संस्कृत शब्द है । इसके प्राकृत रूप देरं, तुभारं, दारं और बारं होते हैं । इन में सूत्र-संख्या-१-१४४ से ' का लोप; १-७E से 'श्रा' का 'ए'; ३.२५ से प्रथमा के एक वचन में नपुसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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