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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * में "सि' प्रत्यय के स्थान पर "ओ" १-१७७ से "त" का लोप; और ३-२ से प्रथमा के एक वचन में पुल्लिा होकर क्रम से संठविओं और संठाविसी रूप सिद्ध हो जाते है। प्राकृतम संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप पययं और पाययं होते हैं। इसमें सूत्र संख्या २.७१ से 'र' का लोप; १-६७ से 'पा' के 'आ' का विकल्प से 'अ'; १-१२६ से 'ऋ' का 'अ'; १.१५७ से 'क' और 'त्' का लोप १-१८० से 'क' और 'त' के शेष दोनों 'अ' को कम से की प्राप्ति; ३-२५ से प्रयमा के एक वचन में मसलिम में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय को प्राप्ति; और १.२६ से प्राप्त 'म' का अनुस्वार होकर क्रम से पययं और पाययं रूप सिद्ध हो जाते हैं। तालवृन्तम संस्कृत शब्द है । इसके प्राकृत रूप तल, तालवेष्टं, तलवोटं और तास्वोर्ट होते हैं । इनमे सूत्र संख्या १-६७ से आदि 'आ' का विकल्म से 'अ'; १-१३९ से 'क' का 'ए' और 'ओ' कम से; २-३१ से 'त' का 'ष्ट'; ३-२५ से प्रथमा के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय को प्राप्ति: तौर -२३ से शाम' का अनुसार नोकर कम से हलवेण्ट, तालपेण्ट. तलवीण्टं और तालवोण्ट एप सिद्ध हो जाते हैं। झालिकः संस्कृत शब्द है । इसके प्राकृत रूप हलियो और हालिओ होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १.६७ से आदि 'अ' का विकल्प से 'अ'; १-१७७ से '' का लोग; ३-२ से प्रथमा के एक वचन में पुलिस में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओं प्रत्यय होकर कम से हलिओ और हालिओ रूप सिख हो जाते है। नाराचः संस्कृत शम्म है। इस प्राकृत रूप नरायो और नाराओ होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-६७ मे आदि 'आ' का विकल्प से 'अ'; १.१७७ से '' का लोप; और ३-२ में प्रयमा के एक बचन में पुल्लिा में 'प्ति प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय होकर कम से मराओ और नाराओ रूप सिद्ध हो जाते हैं। पलाका संस्कृत शन है। इसके प्राकृत प बल्या और बलाया होते हैं। इनमें सत्र संख्या १.६७ से आदि 'आ' का विकल्प से 'म'; १-१७७ से कालोप; १-१८. स शेष-'अ' का 'य'; और सिद्ध-हेम व्याकरण के २-४-१८ से अकारान्त स्त्रोलिंग में प्रथमा के एक बबन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'पा' होकर कम से घलया और बलाया रूप सिद्ध हो जाते हैं। कुमारः संस्कृत शब है। इसके प्राकृत रुप कुमरो और कुमारो होते हैं। इन में पूत्र-संख्या १-६७ से 'या' का विकल्प से ''; और ३-२ से पुल्लिग में प्रथम के एक वचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कम से कुमरो और कुमारो र सिद्ध हो जाते हैं। खादिरमः संस्कृत शम्न है । इसके प्राकृत रूप खहरे और बाहर होते हैं। इनमें सूत्र संख्या-१-६७ से आणि 'आ' का विकल्प से 'अ'; १-१७७ ' का लोप; ३-२५ से प्रथमा के एक पचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर क्रम से खहरे और खाहर रूप सिद्ध हो जाते हैं।
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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