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________________ * प्राकृत व्याकरण * अथषा संस्कृत अव्यय है । इसके प्राकृत रूप अहष और अहवा होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-१८७ से 'य' का 'ह' और १-६७ से 'आ' का विकल्प से 'अहोकर अहष और अहवा रूप सिब हो जाते हैं । चा संस्कृत अव्यय है । इसके प्राकृत रूप व और वा होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-६७ से 'मा' का विकल्प से 'अ' होकर च और का रूप सिद्ध हो जाते हैं। हा संस्कृत अग्यय है। इसके प्राकृत रूप ह और हा होते हैं । इनमें सूत्र संख्या १.६७ ते 'आ' का विकल्प से 'अ' होकर 'ह' और 'हा' रूप सिद्ध हो जाते हैं। उत्तवासम् संस्कृत शब है। इसके प्राकृत रूप वश्वपं और उपवार्य होते हैं। इनमें सम संख्पा-२.७७ से झारिस'का लोप; २.८९ से 'ख' का विरद 'क' २.९० से प्राप्त पूर्व ' का 'क'; १.६७ से आ' का विकास से 'अ'१-१७७ से द्वितीय 'त' का लोपः १-१८० से 'के 'अ' का 'य', ३-२५ से प्रथमा के एक वचन मनपुसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय को प्राप्ति; १-२३ से प्राप्त 'म'का अनधार होकर क्रम से उखये और उपवार्य रूप सिद्ध हो जाते हैं। चामर संस्कृत शम्ब है । इसके प्राकृत रूप चमरो और चामरी होते हैं। इनमें सूत्र संख्या-१-६७ से आदि 'आ' का विकल्प से 'अ' और ३.२ से प्रयमा के एक वचन में पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय होकर म से चमरो और चामरो रूप सिद्ध हो जाते हैं। फालक संस्कृत शब्द हैं । इसके प्राकृत कप कलओ और कालओ होते हैं। इनमें सूत्र संस्था--१.६७ से आदि 'आ' का विकल्प से 'अ'; १-१७७ सेक' का लोप; और ३-२ से प्रथा के एक बबन में पुलिलम 'सि' प्रत्यय के स्थान पर शो प्रत्यय होकर कम से कलओ और कालओ रूप सिद्ध हो जाते हैं। स्थापित संस्कृत शम्न है । इसके प्राकृत रुप विओ और त्रिभो होते हैं । इन में सूत्र संख्या-४-१६ से "स्था' का ''; १-५७ से प्राप्त 'का" के "आ" का विकल्प से "अ"; १-२३१ से "प" का ""; -१७७ से 'त्' का लोप; ३-२ से प्रथमा के एक वचन में पुल्लिग में 'fa" प्रत्यय के स्थान पर "ओ' प्रत्यय होतर भमसे ठविमओ और ठाविओ कप मिड हो जाते हैं। प्रतिस्थापितः संस्कृत शम्य है। इसके प्राकृत प परिखियो और परिवादियों होते है। इनमें सूत्र-संख्या-१-३८ से "प्रति" के स्थान पर "परि"; ४-१५ से "स्पा" का ""; २-८९ से "प्राप्त " को हिस्व ""; २.९० से प्राप्त पूर्व "" का ""; १-२३१ से "प" ta"; १.६७ से प्राप्त "" के "" का विकल्प से "अ"; १-१७७. से "त्" का लोए; ३-२ से प्रथमा के एक वचम में पुस्लिप में "म" प्रत्यय के स्थान पर "ओ" होकर परिद्वापिओ और परिद्धाविमो रूप सिद्ध हो जाते हैं। संस्थापितः संस्कृत शग है। इसके प्राकृत रूपठविमो और संठाविओहोते है। इनमें सूप-संख्या ४.१६ से "स्था" का "ठा"; १-६७ से प्राप्त "ठा" के "आ" का ''"; १-२३१ से "q" का "";
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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