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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [८६ से भूत कुन्त के 'त' प्रत्यय के पहिले आने वाली 'इ' को प्राप्ति मौजूद हो है: १-१७७ से 'तु' का लोप; ३-२५ से प्रथमा के एक बचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म'का अनुस्वार होकर ओप्पिो अप्पिो रूप सिद्ध हो जाते है ।। ६३ ।। स्वपावुच्च ॥१-६४॥ स्वपितौ धातौ श्रादेरस्य श्रोत् उत् च भवनि । सोवइ सुवइ ।। अर्थ:-स्वपिति' धातु में आदि 'अ' का 'ओ' होता है और 'उ' भी होता है। जैरे-स्वपिति = स्रोग और सुबइ। स्वपिति संस्कृत क्रियापद है। इसका पातु वप है । इसका प्राकृत रूप सोपा और सुबह होता है। इसमें सूत्र संस्था ४-२३९ से हलन्त 'प्' में 'अ' का संयोजन; १-२६० से '' का 'स्'; २-१ से 'व' का लोप; १-२३१ से ' का 'द'; १-६४ से आदि 'अ' का 'ओ' और 'इ' अप से ३-१३९ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एक प ति के स्थान पर होर सोपड़ मार सुवह रूप सिद्ध हो जाते हैं ॥ ६ ॥ नात्पुना दाई वा ॥ १-६५ ।। नत्रः परे पुनः शब्दे आदेरस्य 'आ' 'आई' इत्यादेशी वा भवतः ।। न उणा ॥ न उणाइ । पक्षे न उण : न उणो । केबलस्यापि दृश्यते । पुणाइ । अर्थ:-न अव्यय के पश्चात् आप इए 'पुनर्' शद में आदि 'अ' को 'आ' और 'आई' ऐसे यो आदेश शाम से और विकल्प से प्राप्त होते हैं। जैसे-न पुनर = न उणा और न उणा । पक्ष में-न उण और न उणो भी होते हैं। कहीं कहीं पर 'न' अध्यय नहीं होने पर भी 'पुनर' शब म विकल्प रूप से उपरोक्त आच 'माइ' देखा जाता है । जैस-पुनर = पुणाई || न पुन: संस्कृत अव्यय है । इसके प्राकृत हम न उणा न खणाद, उन; न उणी होते हैं। इसमें सूत्रमा १-१७७ से 'पू' का लोप; १-२२८ से पुनर् के न' का 'म'; १.११ से विसर्म माने 'र' का लोप; १-६५ सं प्राप्त ग' के 'अ' को कम से और विकल्प में 'आ' एवं 'बार' मावेशों को प्राप्ति होकर न उमान जणाइ, और म उष्ण रुप सिद्ध हो जाते है । एवं पम-११ के स्थान पर १.३७ से निसर्ग के स्थान पर 'मी' होकर न उणो रूप सिद्ध हो जाता है। पुनः का रूप पक्ष में पुणा मो होता है। इसमें सब संख्या १-२२८ से नाकाम'; १-११ से विसर्म सो 'इ' का लोप; और १६५ से 'अ' को वस 'भार' मावेश की प्राप्ति होकर 'पुणा सिद्ध हो पाता है । ६५ ।।
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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