SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * प्राकृत व्याकरण * पक्वाङ्गार-ललाटे वा ।। १-४७॥ एष्वादेरत इत्वं वा भवति ॥ पिक्क पक्कं । इङ्गालो अङ्गारो । णिडालं णडालं ॥ . अर्थ:-इन शब्दों में पक्य-अङ्गार- और ललाट में आदि में रहे हए 'अ' की 'इ' विकल्प से होती है । [सं-पक्कम = पिक्क और पपकं । अङ्गार:= हङ्गालो और अङ्गारो | ललाटम् - पिडालं और णडालं ।। ऐसा जानना । पक्वम् संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप पिक और पर होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १.४७ से आदि 'अ' को विकल्प से '; १-१७७ से 'व' का लोप; २-८९ सेशेव 'क' का बित्व 'क'; ३-२५ से नपुंसक लिंग में प्रथमा के एक पचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' को प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म' का अनुस्वार होकर कम से पिक्कं और यक्कं रूप सिद्ध हो जाते हैं। अङ्गारः संस्कृत शब्द हैं। इसके प्राकृत रूप ङ्गालो और अचारो होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-४७ से आदि 'अ' को विकल्प सइ १-२५४ से 'र' का 'ल' विकल्प से, और ३.२ से पुल्लिग में प्रथमा के एक वचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'मो' होकर कम से उकालो और अङ्गारो कृप सिद्ध हो जाते है। ललाटम् संस्कृत शम्य है । इसके प्राकृत रूप णिलाल और गडालं होते हैं । इनमें सूत्र संख्या १-२५७ मे श्रादिल' का '; १-७ से प्राप्त 'ण' के 'अ' को विकल्प से ''; ११९५ से 'ट' का ''; २-२३ से द्वितीय 'ल' और प्राप्त 'ल' का स्पस्यय ( आगे का पीछे और पीछे का आगे );-३-२५ से नपुसक लिंग में प्रथमा के एक वनन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर ऋम से पिंडाले और णडाल रुप सिद्ध हो जाते हैं ॥-४७ ।। मध्यम-कतमे द्वितीयस्य ॥ १-४८ ॥ मध्यम शब्द कतम शब्दे च द्वितीयस्यात इत्वं भवति ॥ मज्झिमो । कहमो । अर्थ:-मध्यम शब्द में और कतम शम्ब में द्वितीय 'अ'को 'ह' होती है । जैसे-मध्यमः = ममिमी। कतमः= कामो॥ मध्यमः संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप मजिसमो होता है इसमें सत्र संख्या-१-४८ से द्वितीय 'अ' की'; २-२६ से 'व्य' का 'श'; २-८९ से प्राप्त 'सका द्वित्व श; २-९० से प्राप्त'झ' का 'ज'; ३-२ स पुल्लिग में प्रथमा के एक वचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' होकर 'मज्झिमो रूप सिद्ध हो जाता है । कतमः संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप कइमो होता है। इसमें सत्र संख्या-५-१७७ से 'त' का लोप; १-४८ से शेष द्वितीय 'अ' की '.'; ३-२ से पुल्लिग में प्रथमा के एम वचा में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' होकर कड़मो रूप सिद्ध हो जाता है। ।। ४८ ॥
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy