SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित 4+ [ ७६ ग् चेतसः संस्कृत है। इसका प्राकृत रूप बेडियो होता है। इसम सूत्र संस्था-१-४६ से '' के 'अ' को 'इ' १२०७ से 'ल' का '' २-२ से प्रथम के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' होकर 'वेडिसी' रूप सिद्ध हो जाता है। सतिकडून व्यलीकम् संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप विली होता है। इसमें सूत्र संख्या-२-७८ से '५' का लोपः १-४६ से प्राप्त 'व' के 'अ' की ' १८४ से 'ली' के दो 'क' १-१७७ से 'कू' का लोप १-२५ से प्रवर के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' की प्राप्तिः १ - २३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर बिलिअं रूप सिद्ध हो जाता है। इसका प्राकृत रूप मुद्दइयो १-१७७ से '' का लोप होकर सिद्ध हो जाता है। * व्यजनम संस्कृत शब्द है। इस प्राकृत रूप विभ होता है इसमें सूत्र संख्या २७८ से 'म्' कालोप १-४६ से प्राप्त 'व' के 'अ' की 'इ' १-१७७ से 'म' का लोपः १-२२८ से 'न' का 'ण' ३२५ से प्रथमा में एक वचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' को प्राप्ति १-२३ से प्राप्त 'न' का अनुस्वार होकर 'f' रूप सिद्ध हो जाता है। मुजः संस्कृत शब्द है। ''१-४६ से 'व' के 'अ' की 'इ' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' होकर होता है। इसमें सूत्र संख्या ११३७ से ''का ३-२ से प्रथम के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' -१-१२८' को '' १४६ कृपण: संस्कृत शब्द है इसका रूप थियो होता है। इसमें सूत्र से 'प' के 'अ' की 'ह' १-२३१ से 'ए' का 'व' ३-२ से प्रथम के एक वचन में पुल्लिन में 'सि' प्रत्ययन के स्थान पर 'भी' होकर किविणो रूप सिद्ध हो जाता है । उत्तमः संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप उतिमी होता है। इसमें सूत्र संख्या १-४६ से 'त' के 'अ' की 'इ'; और ३-२ से प्रथमा के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय होकर उत्तिम रूप सिद्ध हो जाता है। मरिच संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप मिरिअं होता है। इसमें सूत्र संख्या १२४६ से 'म' के 'अ' की 'इ' १-१७७ से '' का लोप; ५-२५ से नपुंसक लिंग में प्रथमा के एक वचन में 'सि' प्रश्थय के स्थान पर 'म' की प्राप्ति; १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर मिरिअं रूप सिद्ध हो जाता है। दत्तम् संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप विष्णं बनता है। इसमें सूत्र संख्या १-४६ 'व' के 'ब' की 'इ' २-४३ 'स' के स्थान पर 'ण' का आदेश २-८९ से प्राप्त 'प' का हित्य 'म' ३२५ से नपुंसक लिंग में प्रथम के एकवचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'भू' को प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म' का अनुस्वार होकर दिये रूप सिद्ध हो जाता है । देवदन्तः संस्कृत शब्द हैं। इसका प्राकृत रूप घेववतो होता है। इसमें सूत्र संख्या ३-२ से पुल्लिंग में प्रथमा के एकवचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' होकर देवदत्त रूप सिद्ध हो जाता है ।। १-४६ ।।
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy