SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * प्राकृति-व्याकरणम् * चतुर्थपादः सूत्रकार कर्मवाच्य और भाववाच्य के विधिविधान का प्रसंगोपात्त कुछ निर्देश कर रहे हैं--- १३. यदि ६१२ सूत्र में पठित चि आदि धातु कर्मवाच्य तथा भाववाच्य में विद्यमान हो तो उनके अन्त में द्विरुक्त (द्वित्त्व) धकार का प्रागम विकल्प से होता है और उस (ब) का संनियोग (सामीप्य) होने पर क्य-प्रत्यय का लोप हो जाता है। जैसे--- --धीयते-चिव्वइ, चिणिज्जइ (उस से इकट्ठा किया जाता है), २-जीयते - जिधइ, जिणिज्जद (उस से जीता जाता है), ३-भूयते - सुब्बइ, सुणिज्जइ (उस से सुना जाता है), ४-हूयते-हुब्बाइ, कृणिज्जइ (उस से हवन किया जाता है), ५-स्तूमते-थुम्बद, थुणिज्जइ (उस से स्तुति की जाती है), ६-लूयते लुबइ, लुणिज्जइ (उस से काटा जाता है), ७-पूयसे-पुव्वइ, पुणिज्जइ (उम से पवित्र किया जाता है), 5-धूयते -धुव्वइ, धूणिज्जा (उस से धुना जाता है)। यहां पर चि आदि धातुयों के अन्त में 'ध' का वैकल्पिक मागम किया गया है । वृत्तिकार फरमाते हैं कि इसी प्रकार भविष्यकाल-बोधक प्रत्यय परे होने पर भी '' का मागम किया जाता है। भाव यह है कि प्रस्तुत सूत्र द्वारा-विध आदि प्रयोगों में जैसे वर्तमानकाल-बोधक प्रेत्यय परे होने पर 'ध्व' का पागम किया गया है, वैसे भविष्यत् कालिक प्रत्यय के प्रांगे होने पर भी य का प्रागर्म किया जा सकता है। जैसे-चेष्यते -चिबिहिब (उस से इकट्ठा किया जायगड) यहां पर भविष्यत् कालिक प्रत्यय के परे होने पर भी व्ध का प्रागम किया गया है। १४-भावकर्म (भाववाच्य तथा कर्मवाच्य) के चिम् (चि) छातु के अन्त में संयुक्त म (म्म) का प्रागम विकल्प से होता है, और उसम का सानयोग होने पर कम-प्रत्यय का लोप हो जाता है। जैसे-चीयते-चिम्मइ, चिक्ष्व इ, चिणिज्जइ (उससे इकट्ठा किया जाता है), भविष्यत् काल-बोधक प्रस्मय परे होने पर-वेष्यते -चिम्मिहिइ, चिधिहिइ, चिणिहिइ (उस से इकट्ठा किया जायगा) ऐसे .रूप बनते हैं। ५-भाषकर्म में विद्यमान हन् और खन् इन धातुओं के अन्त्य वर्ण को द्विरुक्त (द्वित्व) मारादेश विकल्प से होता है, और इसका संनियोग होने पर क्य-प्रत्यय का लोप हो जाता है। जैसे.१-हत्यते-हम्मद, हणिजद (वह मारा जाता है), २ -- खन्यते - खम्मइ, खणिज्जा (यह खाँदा जाता है), भविष्यत्कालीन प्रस्थय प्रागे होने पर-----निष्यते -हम्मिहिई, हणिहिद (वह मारा आयमा), २- खनिष्यतेम्प सम्मिहिइ, खणिहिइ (वह खोदा जावेगा), ऐसे रूप बनते हैं। यहां पर भावकर्म में हनु और खन् धातु के अन्तिम वर्ण को '' का विकल्प से प्रादेश किया गया हैं। वृत्तिकार फरमाते हैं कि बहुलाधिकार के कारण कार्ता में भी इन धातुओं के अन्तिम वर्ण को 'म्म' का प्रादेश हो जाता है। जैसे-हन्ति - हम्मइ (वह मारता है), यहां पर कर्ता में भी 'म' का आदेश कर दिया गया है। बहुलाधिकार के कारण कहीं पर भावकर्म में भी 'मम' का आदेश नहीं होता है। जैसे-१-हन्तव्यम् हन्तव्वं (मारना चाहिए), २-हत्वा- हन्तुण (मार करके), ३-हतः- हो (मारा हुमा), यहां पर भावकर्म में भी अन्त्यवर्ण को 'म्म' का मादेश नहीं हो सका। १६-कर्मभाव (कर्मवाच्य तथा भाववाच्य) में दुह, लिह, यह, और रुप इन धातुओं के प्रत्य वर्ण को विकल्प से द्विरुक्त (द्वित्व) भकारादेश होता है और उसका संनियोग (सोमोच्य) होने पर क्यप्रत्यये का लोप तथा वह धातु के प्रकार को उकारादेश हो जाता है। जैसे------बुझते - दुभाइ, दुहिज्जइ (वह दूहा जाता है), २-लिह्यतेलिबभइ, लिहिज्जह (वह चाटा जाता है),३-उह्यतेमा बुन्भइ,बहिज्ज (वह उठाया जाता है),४- रुथ्यते - रुकभइ, रुन्धिाजइवह रोका जाता है), भविष्यत्
SR No.090365
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorHemchandrasuri Acharya
PublisherAtmaram Jain Model School
Publication Year
Total Pages461
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy