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________________ AAR mar-wr naikishaasaniamin-HinAAP. - - - - - - * प्राकृत व्याकरणम् * चतुर्थपादः ८८७-छिदि और भिदि धातुओं अन्त्य के वर्ण को नकाराकान्त (नकार से युक्त) दकार होता है। जैसे-१-छिनत्तिछिन्द (बह छेदन करता है), २ --भिनत्ति =भिन्दइ (वह भेदन करता है) यहां पर छिदि आदि धातुओं के अन्तिम वर्ण को 'न्द' यह आदेश किया गया है। ___ -युध, बुध्, गृथ्, क्रुध, सिध् और मुह, इन धातुओं के अन्तिम वर्ण को द्विरुक्त (जिसे दो बार कहा गया हो) झकार होता है। जैसे----युध्यते = जुभाइ (बह युद्ध करता है), २-बोपते-बुझा (वह बोध प्राप्त करता है), ३--गृध्यति-निजाइ वह प्रासक्त होता है), ४--कुष्यति -कुज्झइ (वह कोध करता है), ५-- सेवति-सिज्झइ (बह गति करता है), ६-मुह्यति मुझ (वह मोहित होता है) यहां पर युध् प्रादि धातुओं के अन्तिम वर्ग के स्थान में 'झम' यह प्रादेश किया गया है। --रुध् धातु के अन्त्य वर्ण के स्थान में न्ध, म्भ सूत्रोक्त चकार के कारण भूक ये तीन मादेश होते हैं। जैसे- रणद्धि रुन्धइ, सम्भइ, उझद, (वह रोकता है) यहां रुध् धातु के धकार को न्य प्रादि तीन प्रादेश किए गए हैं। ८९-सद् और पत् धातु के अन्त्यव्यञ्जन को डकारादेश होता है । जैसे--सीवतिसडइ (वह शक्तिहीन होता है), २-पति-पडइ (वह गिरता है) यहां पर सद और पत् इन धातुओं के अन्त्य व्यजन को डकारादेश किया गया है। ८६१-क्वथ् और वर्ध धातु के अन्त्य वर्ण को ढकारादेश होता है । जैसे-१-पसथतिमा कडाइ (वह कहता है), २-वर्धते प्लवक-कल-कल:-वड्ढाइ पवय-कलयलो (प्लवकों-बन्दरों का कलन कल-कोलाहल बढ़ता है), ३-परिवर्धते लावण्यम् - परिअड्ढाइ लायणं (लावण्य-सौन्दर्य बढ़ता है) यहाँ पर क्वय् मौर वर्ष धातु के अन्तिम वर्ण को ढकारादेश किया गया है। यहां एक प्रश्न उपस्थित होता है कि सूत्र में क्वथ् और वर्ष इन.दो घासुमों का ग्रहण किया गया है, अतः यहां द्विवचनान्त पद होना चाहिए था, किन्तु सूत्रकार ने इस पद को बहुवचनान्त क्यों बना दिया है ? इस का क्या कारण है ? उत्तर मेंनिवेदन है कि दो धातु होने से द्विवचनान्त ही पद होना चाहिए था, किन्तु सूत्रकार ने यहां बहुवचनान्तपद देकर वृध धातु तथा गुण हो जाने पर वर्ष, इस तरह वृध और वधु इन दोनों धातुओं का ग्रहण करना संसूचित किया है। इसीलिए वृत्तिकार लिखते हैं कि बहुवचन के ग्रहण से वृष धातु तथा कृतगुण (जिसको गुण कर दिया गया हो) वधु धातु का अविशेष (सामान्य) रूप से ग्रहण होता है। ६६२-वेष्ट धातु यदि वेष्टन (लपेटने) अर्थ में हो तो ३४८ सूत्र से पकार का लोप होने पर उसके टकार को कारादेश होता है। जैसे .....१ ---वेष्टते- वेढइ (वह लपेटता है),२---वेष्टयतेन वेदिज्जइ (उस से लपेटा जाता है) यहां पर वेष्ट धातु के टकार को हकार किया गया है। .. ८६३----सम् उपसर्ग पूर्वक वेष्ट धातु के अन्त्य वर्ण को द्विरुक्त (जिसे दो बार कहा गया हो) सकार होता है। जैसे-संबेष्टते-संवेल्लइ (बह अच्छी तरह लपेटता है) यहां वेष्ट धातु के टकार को ल्ल यह प्रादेश किया गया है। ४-उद् उपसर्ग से परे वेष्ट धातु के अन्त्यवर्ण को विकल्प से 'ल' यह आदेश होता है। जैसे वेष्टते- उच्वेल्लइ जहां प्रस्तुत सूत्र ने कार्य नहीं किया, वहां पर----उवेढा (बह बन्धन मुक्त करता है) यह रूप बनता है।
SR No.090365
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorHemchandrasuri Acharya
PublisherAtmaram Jain Model School
Publication Year
Total Pages461
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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