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________________ ...muthunhi.APP.. ४५ * प्राकृत-व्याकरणम् * चतुर्थपादः पक्ष में-बसप्पह (वह धीरे-धीरे जाता है। यह रूप बनता है। ११ सम् उपसर्ग पूर्वक तपि धातु के स्थान में 'म यह प्रादेश विकल्प से होता है। जैसे---संतपति महादेश के प्रभावपक्ष में-संतप्पड (बह सन्ताप करता है) ऐसा रूप बनता है। ८१२--वि और प्राङ् (प्रा) उपसर्ग पूर्वक प्रापल (पाप) धातु के स्थान में ओममा यह प्रादेश विकल्प से होता है। जैसे-च्याप्नोतिनोग्रामइ मादेश के प्रभावपक्ष में-वावेइ (वह व्याप्त करता है) ऐसा रूप होता है। ८१३-सम् और प्राइ (मा) उपसर्ग पूर्वक प्राप्ल (ग्राप) धातु को समाण'यह आदेश विकल्प से होता है । जैसे--समाप्नोति राम, मादेश के अनापत में -- अद समाप्त करता है। ऐसा रूप हो जाता है। १४- क्षिपि धातु के स्थान में.-१-लत्य, २. प्रड्डयाख, ३-सोल्ल, ४-पेल्ल, ५---- गोल्ल, ६-छह, ७-हुल, ८-परी और घत्त ये ९ आदेश विकल्प से होते हैं। जैसे -क्षिपतिगलत्वदा प्रडक्ख इ, सोल्लइ, पेललइ, पोल्लाह, छुहइ, हुलाइ, परीइ, पत्तइ अादेशों के प्रभावपक्ष मेंखिवा (वह फैकता है) ऐसा रूप बन जाता है। 'गोल्ला' यहां पर ५४ सूत्र से ह्रस्व हो जाने पर 'शुरुलाई' यह रूप भी होता है। .. १५-उत् उपसर्गपूर्वक क्षिपि धातु के स्थान में-१ गुलगुरुख, २ - उत्थड. ३--उल्लत्प*, ४-उन्मुत्त ५---उस्सिक और ६.-- हपखुव ये ६ ग्रादेश विकल्प से होते हैं। जैसे- उत्क्षिपति - गुलहुन्छइ, उत्याचइ, उल् लत्थइ, उन्भुत्तइ, उस्तिक्कइ, हक्खुवइ आदेशों के प्रभावपक्ष में-उरिलवाद (बह ऊंचा फेंकता है) यह रूप बनता है। ....... १६-आइ (मा) उपसर्ग पूर्वक क्षिपिघातु के स्थान में 'णीरव' यह प्रादेश विकल्प से होता है। जैसे---आक्षिपतिवीरवइ अादेश के प्रभाव-पक्ष में----अक्खियाइ (वह प्राक्षेप करता है) यह रूप होता है। ... १७-स्वपि धातु के स्थान में-१-कमबस, २-~लिस और ३-लोह ये तीन प्रदेश विकल्प से होते हैं। जैसे---स्वपिति-कमवसइ, लिसइ, लोट्टइ आदेशों के प्रभावपक्ष में--सुअइ (बह वह शयन करता है) यह रूप होता है। : १८-वेपि धातु के स्थान में--प्रायम्ब और २--प्रायज्झ ये दो आदेश विकल्प से होते हैं। जैसे-वेपतेमप्रायनाइ, आयमा प्रादेशों के प्रभावपक्ष में-बेवइ (वह कांपता है। यह रूप होता है। १९-वि पूर्वक लपि धातु के स्थान में--१-झल और २-बडवड ये दो प्रादेश विकलप से होते हैं। जैसे---विलपति मखद, वडवडइ आदेशों के अभावपक्ष में -विलवह (वह विलाप करता है) यह रूप होता है। १२०-लिप् धातु के स्थान में 'लिम्प' यह आदेश होता है । जैसे-लिम्पति -लिम्पद (बह लेप करता है) यहां पर लिप् धातु के स्थान में "लिम्प' यह आदेश किया गया है। २१-गुप धातु के स्थान में विर और 'गड' ये दो धादेश विकल्प से होते हैं। जैसेगुप्यति-विरइ, पाइइ प्रादेशों के प्रभावपक्ष में-गुप्वाइ (वह व्याकुल होता है) ऐसा रूप बनता है। कहीं पर अल्लस्य ऐसा पाठ भी है।
SR No.090365
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorHemchandrasuri Acharya
PublisherAtmaram Jain Model School
Publication Year
Total Pages461
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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