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________________ * प्राकृत व्याकरणम् ★ २४ चतुर्थपादः पर कुगि धातु को मिट्ठूह आदि दो बादेश किए गए हैं। ७३६-श्रम-विषयक (जिस का श्रर्थं श्रम- मेहनत करना हो) कृगि धातु के स्थान में 'वावम्फ' यह श्रादेश विकल्प से होता है। जैसे—-धमं करोति-वावम्फइ ( वह श्रम करता है) यहां पर कृमि धातु को 'बाम्फ' यह प्रादेश किया गया है। ७४०"मन्यु (क्रोध) करने से जब होठों में मालिन्य ( कालापन, मैलापन) हो" इस अर्थ अपना विषय (अर्थ) बनाने वाले कृमि धातु के स्थान में 'विश्वास' यह प्रदेश विकल्प से होता है । जैसे—मन्युना ओष्ठं मलिगं करोति = मिथ्योल ( वह क्रोध से होठों को मलिन खराब कर रहा है) प्रदेशों के प्रभाव पक्ष में मनुरा ओट्ट मलिरगं करेड' यह रूप बन जाता है। ७४१ दशैथिल्य (शिथिलता- ढोलापन) विषयक (विषय-मर्थ हो जिस का) तथा लम्बन ( लटकना, भूलना) विषयक कृमि धातु के स्थान में 'पहल' यह प्रदेश विकल्प से होता है । जैसे-शिथिलो भवति, लम्बते या = पयल्लइ ( वह शिथिल होता है, अथवा लटकता है, भूलता है) यहां पर कृगि धातु को 'पहल' यह आदेश किया गया है। ७४२ - निष्पतन-विषयक (जिस का अर्थ झपट कर निकलना, शीघ्र बाहिर माना हो) अथवा छोटन विषयक (जिस का अर्थ माच्छोटन उँगलिया चटकाना हो। कृमि धातु के स्थान में 'नोयह प्रदेश विकल्प से होता है। जैसे- विपतति, आच्छोदयति वाणी लुक्छ (वह झपट कर निकलता है, अथवा उंगलियां चटकाता है) यहां पर कृमि धातु को गीलुञ्छ यह आदेश किया गया है । ७४३-क्षुरविषयक (जिस का अर्थ क्षुर-उस्तुरे से सम्बन्धित हो) कृगि धातु के स्थान में 'कम्म' यह प्रादेश विकल्प से होता है। जैसे क्षुरं करोति कम्मद (क्षुर-सम्बन्धी कार्य करता है, हजामत बनवाता है) यहां पर कृगि धातु को कम्म यह प्रादेश किया गया है । ७४४- चाटुविषयक (जिसका अर्थ वाटु खुशामद करना हो) कृगि धातु के स्थान में 'गुलाल' यह श्रादेश विकल्प से किया जाता है। जैसे-बाद करोति गुललइ ( वह खुशामद करता है) यहां पर कृति धातु की 'गुलस' यह प्रादेश किया गया है । alhot - बिम्हर, ७४५ -- स्मृ धातु के स्थान में १ र २ भूर, ३-भर, ४-भल, ५--लड, ६-७-सुमर, ८--पयर और E-पम्मूह ये ९ प्रदेश विकल्प से होते हैं। जैसे- स्मरति भरइ, क्रूरइ, भरइ, भलाइ, लढइ, विम्हरद, सुमरइ, पर, पम्हुहइ प्रदेशों के प्रभावपक्ष में सरह ( वह याद करता है) यह रूप बन जाता है । ★ अथ घाटवादेश-विधिः (ब) ★ ७४६ - विस्मुः परहस- विम्हर बीसराः । ८ । ४ । ७५ । विस्मरतेरेते आदेशा भवन्ति । पम्हुसद, विम्हरs, वीसरह । ७४७ - व्याहृनेः कोक्क पोषकौ । ८ । ४ । ७६ । व्याहरतेरेतावादेशौ वा भवतः । start | ह्रस्वत्वे तु कुक्कई । पोक्कइ । पक्षे, बाहरं । ७४८ - प्रसरेः पल्लोवेल्लौ । ६ । ४ । ७७ । प्रसरतेः पयल्ल, उवेल्ल इत्यावादेशौ वा भवतः । पयल्लइ, उवेल्लइ, पसरइ ।
SR No.090365
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorHemchandrasuri Acharya
PublisherAtmaram Jain Model School
Publication Year
Total Pages461
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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