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________________ ३६४ ★ प्राकृत-व्याकरणम् ★ चतुर्थपादा होने पर १००१ सूत्र से प्रकार को दीर्घ किया गया है। इसी प्रकार बाहुबलम् बाहुबलुल्लडउ [भुजा का बल ] यह रूप बनता है। यहां पर -१ हुल [ उश्ल] २ ३ इन तीन प्रत्ययों का योग [मेल ] पाया जाता है। अर्थात् यहां पर बाहुबल-शब्द से बुल्ल-ड- प्र [उल्ल श्रड-उल्लड ] ये तीन प्रत्यय करके बाल इस रूप की निष्पत्ति की गई है। [] ११०२-- अपभ्रंश भाषा में, स्त्रीलिङ्ग में वर्तमान विद्यमान प्राक्तन [ पहले ] सूत्रोक्त [ दो सूत्रों द्वारा उक्त ] प्रत्ययान्त (प्राय है अन्त में जिस के शब्दों से अर्थात् - ११०० वे सूत्र से प्रतिपा दित अ, ड, और डुल्ल इन तीन प्रत्ययों वाले तथा ११०१ वें सूत्र से उक्त डड, डुल्ल-अ, डुल्ल-अय तथा डुल्ल-ड-अ इन प्रत्ययों वाले शब्दों से स्त्रीलिङ्ग में डी-प्रत्यय होता है । जैसे - पथिक ! दृष्टा गोरो ? दृष्टा मार्ग पश्यन्ती । अव चुकमा शुष्कं कुर्वन्ती || १ || विका] की देवा का उत्तर देते हुए उसने कहा- हा देखा है, वह मार्ग देख रही थी, मांसूत्रों से भरने क [श्रंगिया ] को भाई बना रही थी मोर साथ ही गरम उच्छ्वासों [माहों] द्वारा उसे सुखा भी रही थी। यहां पर पठित गौरी-गोगोरडी [गौर वर्ण वाली मारी ] इस पद में उड-प्रत्यय से धाने डी- [ई] अत्यय किया गया है। गुल-प्रत्यय से किए गए डी-प्रत्यय का उदाहरण इस प्रकार है - एका कुटी पञ्चभिः रुद्धा एक्क कुदुल्ली पहिं रुखो [एक कुटिन पांचों ने रोक रखी है] यहां पर पठित कुटी कुडुल्ल = कुडुल्ली [कुटिया] इस पद में डुल्ल-प्रत्यय से डी-प्रत्यय किया गया है। अर्थात्-हे पथिक तू गौरी was ११०३ - अपभ्रंश भाषा में स्त्रीलिङ्ग में वर्तमान [विद्यमान] "अप्रत्ययान्त वाले प्रत्ययान्त शब्द से परे डा प्रत्यय होता है। यह ११०२ सूत्र से होने वाले डी-प्रत्यय का अपवाद सूत्र है । जैसेयि आयातः श्रुता वार्ताf, soft: करणे प्रविष्टा । तस्य विरहस्य मइयतः धूलिरपि न हृष्टा ॥१॥ अर्थात् प्रीतम श्रागए हैं, यह बात सुनी, प्रीतम के आने की व्वति [आवाज ] जब कानों में पंडी, तब नष्ट होते हुए विरह की वृति भी दिखाई नहीं दी। यहां पर पठित वृलिः घुलउम्र धूलfor [r] इस पद में प्रत्ययान्त [] वाले प्रत्ययान्त [जिस के अन्त में प्रत्यय हो ] धूलडअ इस शब्द से डा प्रत्यय करके लडिया यह रूप बनाया गया है । ११०४ - अपभ्रंश भाषा में, स्त्रीलिङ्ग में वर्तमान नाम प्रातिपदिक का जो प्रकार है, उसको आकार प्रत्यय परे होने पर दकार होता है । जैसे- धूसिरप न दृष्टा = घुलडिया बिन दिट्ठ [ बुलि भी दिखाई नहीं दी ] यहां पर आकार [डा ] प्रत्यय परे होने पर धूल घुलड +था+सिंइस पद में कार के स्थान में इकार करके "धूलडिओ" यह रूप बनाया गया है। ध्यान रहे कि यह प्रकार के स्थान में होने वाला इकारादेश स्त्रीलिङ्ग में ही होता है, अन्यत्र नहीं । जैसे ध्वनिः करणं प्रविष्टा झुणि * जिस प्रत्यय के अन्त में प्रत्यय हो उसे प्र-प्रत्यय प्रत्यय कहते कहते हैं। जैसे—४४ - यह प्रत्यय है, इसके अन्य में प्रत्यव है, पत: यह प्रत्ययान्तप्रत्यय समझना चाहिए तथा जिस शब्द के अन्त में प्रत्ययान्त वाला प्रत्यय हो वह शब्द त्यात प्रत्ययान्त कहलाता है। जैसे धूलि धूल +धा+सि इस प्रक्रिया से धूल-सा यह शब्द बनता है । शब्द के अन्त में घप्रत्ययान्स वाला प्रत्यय [ कब-म ] दृष्टिगोचर हो रहा है, मतः लटिया यह शब्द - प्रत्यगान्त प्रत्ययान्त जानना चाहिए। JAN
SR No.090365
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorHemchandrasuri Acharya
PublisherAtmaram Jain Model School
Publication Year
Total Pages461
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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